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उवक्कमाणुयोगद्दारे ट्ठिदिउदीरणा
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सव्वे जीवा अणुदीरया, सिया अणुदीरया च उदीरओ च, सिया अणुदीरया च उदीरया च। एवं तिण्णि भंगा ३। अजहणस्स वि तिण्णि चेव भंगा लभंति ३ । एदेसि समासो छभंगा होंति ६ । पंचदंसणावरणीय-बारसकसाय-भय-दुगुंछा-तिरिक्खाउआदावुज्जोव-थावर-सुहम-साहारणणामाणं जहण्णट्टिदीए णियमा उदीरया अणुदीरया च अस्थि । मणुस्सगइ-देवगइ-णिरयगइपाओग्गाणुपुवीणामाणं जहण्णढिदिउदीरणाए सोलस-सोलस भंगा। मणुस-देव-णिरयआउआणं च जहण्णढिदिउदीरयाणं छ भंगा होति। सम्मामिच्छत्त-आहारसरीराणं सोलस भंगा। एवं णाणाजीवेहि भंगविचओ समत्तो।
णाणाजीवेहि कालो अंतरं च णाणाजीवेहि भंगविचयादो साहेद्ण वत्तव्वं । एवं कालंतरपरूवणा समत्ता।
सण्णियासो वुच्चदे- मदिणाणावरणीयस्स उक्कस्सद्विदिमुदीरेंतो सुदणाणावरणीयदिदीए किमुदीरओ अणुदीरओ? णियमा उदीरओ। जदि उदीरओ किमुक्कस्सियाए ट्ठिदीए उदीरओ आहो अणुक्कस्सियाए ? उक्कस्सियाए अणुक्कस्सियाए वा। उक्कस्सादो अणुक्कस्सा समऊणमादि काण जाव उक्कस्सेण पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागेणूणा। एवं सेसतिण्णिणाणावरणीय चउदंसणावरणीयाणं वा। पंचदंसणावरणीयाणं असादस्स च अणु
जीव अनुदीरक और एक जीव उदीरक होता है, कदाचित् बहुत जीव अनुदीरक और बहुत जीव उदीरक भी होते हैं ।। इस प्रकार तीन (३) भंग हुए । अजघन्य स्थितिके भी तीन (३) ही भंग प्राप्त होते हैं। इनके जोडसे छह (६) भंग होते हैं। पांच दर्शनावरणीय, बारह कषाय, भय, जुगुप्सा, तिर्यंचआयु, आतप, उद्योत, स्थावर, सूक्ष्म और साधारण नामकर्मोंकी जघन्य स्थितिके नियमसे बहुत जीव उदीरक और अनुदीरक भी होते हैं। मनुष्यगतिप्रायोग्यानुपूर्वी; देवगतिप्रायोग्यानुपूर्वी और नरकगतिप्रायोग्यानुपूर्वीकी जघन्य स्थिति-उदीरणाके सोलह-सोलह भंग होते हैं । मनुष्यायु, देवायु और नारकायुकी जघन्य स्थितिके उदीरकोंके छह भंग होते हैं। सम्यग्मिथ्यात्व और आहारकशरीरके सोलह भंग होते हैं। इस प्रकार नाना जीवोंकी अपेक्षा भंगविचय समाप्त हुआ।
नाना जीवोंकी अपेक्षा काल और अन्तरकी प्ररूपणा नाना जीवोंकी अपेक्षा भंगविचयसे सिद्ध करके करनी चाहिये । इस प्रकार काल और अन्तरकी प्ररूपणा समाप्त हुई। ___ संनिकर्षकी प्ररूपणा की जाती है- मतिज्ञानावरणीयकी उत्कृष्ट स्थितिकी उदीरणा करनेवाला जीव श्रुतज्ञानावरणीयकी स्थितिका क्या उदीरक होता है या अनुदीरक? वह नियमसे उसका उदीरक होता है । यदि उदीरक होता है तो वह क्या उत्कृष्ट स्थितिका उदीरक होता है या अनुत्कृष्ट स्थितिका? वह उत्कृष्ट या अनुत्कृष्ट स्थितिका उदीरक होता है। यदि अनुत्कृष्ट स्थितिका उदीरक होता है तो उसके उत्कृष्टकी अपेक्षा यह अनुत्कृष्ट स्थिति एक समय कम उत्कृष्ट स्थितिको आदि करके उत्कर्षसे पल्योपमके असंख्यातवें भागसे कम तक होती है । इसी प्रकार शेष तीन ज्ञानावरण और चार दर्शनावरण प्रकृतियोंके विषयमें कहना चाहिये। वह पांच
दर्शनावरण और असाता वेदनीयका अनुदीरक और उदीरक भी होता है । यदि उनका उदी रक Jain Education International
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