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उवक्क माणुयोगद्दारे द्विदिउदीरणा
( १३९
देवगइभंगो | पंचसरीरबंधण-संघादाणं पंचसरीरभंगो । एइंदियजादिणामाए जहट्ठिदिउदीरणंतरं जहृण्णेण अंतोमुहुत्तं, उक्कस्सेण असंखेज्जा लोगा । बेइंदियतेइंदिय - चउरिदियजादिणामाणं जहण्णेण पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागो, उक्कस्सेण अनंतकालं । पंचिदियजादिणामाए णत्थि अंतरं । छसंठाण वज्जरिसहवइरणारायणसरीरसंघडणाणं च णत्थि अंतरं । पंचण्णं संघडणाणं जहण्णट्ठिदिउदीरणंतरं जहण्णेण पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागो, उक्कस्सेण अनंतकालं ।
गिरयगइ - देवगइपाओग्गाणुपुव्विणामाणं जहण्णट्ठिदिउदीरणंतरं जहणेण पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागो, उक्कस्सेण अनंतकालं । तिरिक्खगइ - मणुस्सगइपाओग्गाणुपुव्वीणामाणं जहणेण पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागो, उक्कस्सेण अनंतकालं । आदावणामाए जहणेण अंतोमुहुत्तं, उक्कस्सेण अनंतकालं । एवमुज्जोवणामाए। थावर - सुहुम-साहारणाणं जहण्णेण अंतोमुहुत्तं, उक्कस्सेण असंखेज्जा लोगा । दुभग- अणादेज्ज-अजस गित्ति-अपज्जत्तणीचागोदाणमसादभंगो। एवमंतरं समत्तं ।
terrataह भंगविचओ दुविहो- जहण्णपदभंगविचओ उक्कस्सपदभंगविचओ
शरीरांगोपांगकी जघन्यस्थितिकी उदीरणाका अन्तर देवगतिके समान है। पांच शरीरबन्धन और पांच शरीरसंघात नामकर्मोंकी जघन्यस्थिति - उदीरणाके अन्तरकी प्ररूपणा पांच शरीरनामकर्मों के समान है । एकेन्द्रिय जातिनामकर्मकी जघन्य स्थिति उदीरणाका अन्तर जघन्यसे अन्तर्मुहूर्त और उत्कर्षसे असंख्यात लोक प्रमाण है । द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय जातिनामकर्मोंकी जघन्य स्थिति उदीरणाका अन्तर जवन्यसे पत्योपमके असंख्यातवें भाग तथा उत्कर्षसे अनन्त काल प्रमाण है । पंचेन्द्रिय जातिनामकर्मकी जघन्य स्थिति - उदीरणाका अन्तर नहीं होता । छह संस्थानों और वज्रर्षभवज्रनाराचसंहननकी जंघ य स्थितिकी उदीरणाका अन्तर नहीं होता है। पांच संहनन नामकर्मोंकी जघन्य स्थितिकी उदीरणाका अन्तर जघन्यसे पल्योपमके असंख्यातवें भाग और उत्कर्ष से अनन्त काल प्रमाण होता है ।
नरकगतिप्रायोग्यानुपूर्वी और देवगतिप्रायोग्यानुपूर्वी नामकर्मोंकी जघन्य स्थिति - उदीरणाका अन्तर जघन्यसे पत्योपमके असंख्यातवें भाग और उत्कर्षसे अनन्त काल प्रमाण है । तिर्यग्गतिप्रायोग्यानुपूर्वी और मनुष्यगतिप्रायोग्यानुपूर्वी नामकर्मोंकी जघन्य स्थिति - उदीरणाका अन्तर जघन्यसे पत्योपमके असंख्यातवें भाग और उत्कर्षसे अनन्त काल प्रमाण है । आतप नामकर्मकी जघन्य स्थिति - उदीरणाका अन्तर जघन्यसे अन्तर्मुहूर्त और उत्कर्षसे अनन्त काल प्रमाण है । इसी प्रकार उद्योत नामकर्मकी जघन्य स्थिति - उदीरणाका अन्तर भी समझना चाहिये । स्थावर, सूक्ष्म और साधारण नामकर्मोंकी जघन्य स्थिति - उदीरणाका अन्तर जघन्यसे अन्तर्मुहूर्त और उत्कर्षसे असंख्यात लोक प्रमाण है। दुर्भग, अनादेय, अयशकीर्ति, अपर्याप्त और नीचगोत्रकी जघन्य स्थिति - उदीरणाके अन्तरकी प्ररूपणा असातावेदनीयके समान है । इस प्रकार अन्तर समाप्त हुआ ।
नाना जीवोंकी अपेक्षा भंगविचय दो प्रकारका है- जघन्यपदभंगविचय और उत्कृष्टपद
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