________________
१७० )
छक्खंडागमे संतकम्म
वज्जरिसहवइरणारायणसरीरसंघडणस्स णग्गोहपरिमंडलसंठाणभंगो। सेसाणं संघडणाणं पि णग्गोहपरिमंडलसंठाणभंगो। णवरि असंखेज्जगुणहाणी णत्थि । णिरयदेवाणुपुव्वीणं सव्वत्थोवा संखेज्जगुणवड्ढिउदीरया । संखेज्जभागवड्ढीए असंखेज्जगुणा। असंखेज्जभागवड्ढीए असंखेज्जगुणा हेदुणा। उवदेसेण पुण संखेज्जगुणा । अवविदउदीरया असंखेज्जगुणा । संखेज्जभागहाणिउदीरया संखेज्जगुणा । अवत्तत्वउदीरया विसेसाहिया। मणुस्साणुपुटवीए देवाणुपुव्वीभंगो। तिरिक्खाणुपुटवीए सव्वत्थोवा संखेज्जगुणवड्ढीए उदीरया। संखेज्जभागवड्ढीए असंखेज्जगुणा। असंखेज्जभागवड्ढीए अणंतगुणा। अवट्टिदउदीरया असंखेज्जगुणा। अवत्तव्वउदीरया संखेज्जगुणा। असंखेज्जभागहाणीए विसेसाहिया। एदेण बीजपदेण सेसाओ वि पयडीओ जाणिदूण भाणिदव्वाओ। एवं ट्ठिदिउदीरणा समत्ता। एत्तो अणुभागउदीरणा दुविधा- मूलपयडिउदीरणा उत्तरपयडिउदीरणा चेदि। तत्थ मूलपयडिउदीरणा जाणिदूण भाणिदव्वा। उत्तरपयडिउदीरणाए पयदं- तत्थ इमाणि चउवीस अणुयोगद्दाराणि । तं जहा- सण्णा, सव्वउदारणा, णोसव्वउदीरणा, उक्कस्सउदीरणा, अणुक्कस्सउदीरणा, जहण्णउदीरणा, अजहण्णउदीरणा, सादिउदीरणा, अणादिउदीरणा, धुवउदीरणा, अर्धवउदीरणा, एगजीवेण सामित्तं, कालो, अंतरं, णाणाजीवेहि भंगविचओ, भागाभागाणुगमो, परिमाणं, खेत्तं, फोसणं, णाणाजीवेहि कालो,
भी प्ररूपणा न्यग्रोधपरिमंडलसंस्थानके समान है। विशेष इतना है कि उनके असंख्यातगुणहानि नहीं है। नरकगतिप्रायोग्यानुपूर्वी और देवगतिप्रायोग्यानुपूर्वीके संख्यातगुणवृद्धि उदीरक सबसे स्तोक हैं। संख्यातभागवृद्धिके उदीरक असंख्यातगुणे हैं। संख्यातभागवृद्धिके उदीरक असंख्यातगुणे हैं। किन्तु वे हेतुपूर्वक उपदेशसे संख्यातगुणे हैं। अवस्थितउदीरक असंख्यातगुण हैं । संख्यातभागहानिउदीरक संख्यातगुणे हैं। अवक्तव्य उदीरक विशेष अधिक है । मनुष्यगतिप्रायोग्यानुपूर्वीकी प्ररूपणा देवगतिप्रायोग्यानुपूर्वीके समान है। तिर्यग्गतिप्रायोग्यानुपूर्वी के संख्यातगुणवृद्धिउदीरक सबसे स्तोक हैं। संख्यातभागवृद्धिके उदीरक असंख्यातगुणे हैं । असंख्यातभागवृद्धिके उदीरक अनन्तगुणे हैं। अवस्थित उदीरक असंख्यातगुणे हैं। अवक्तव्यउदीरक संख्यातगुणे हैं। असंख्यातभागहानि उदीरकके विशेष अधिक है । इस बीजपदसे शेष प्रकृतियोंकी भी जानकर प्ररूपणा करना चाहिये । इस प्रकार स्थिति-उदीरणा समाप्त हुई।
यहा अनुभागउदीरणा मूलप्रकृतिउदीरणा और उत्तरप्रकृति उदीरणाके भेदसे दो प्रकारकी है। इनमें मूलप्रकृतिउदीरणाका कथन जानकर करना चाहिये। उत्तरप्रकृतिउदीरणा प्रकृत है- उसमें ये चौबीस अनुयोगद्वार हैं। यथा- संज्ञा, सर्व उदीरणा, नोसर्वउदीरणा, उत्कृष्टउदीरणा, अनुत्कष्टउदीरणा, जघन्य उदीरणा, अजघन्य उदीरणा, सादिउदी रणा, अनादिउदीरणा, ध्रुव उदीरणा, अध्रुवउदीरणा, एक जीवकी अपेक्षा स्वामित्व, एक जीवकी अपेक्षा काल, एक जीवकी अपेक्षा अन्तर, नाना जीवोंकी अपेक्षा भंगविचय, भागाभागानुगम, परिणाम, क्षेत्र, स्पर्शन,
४ काप्रतौ ' होदुणा उवदेसेण' ताप्रती 'होदु णा ? उवदेसेण ' इति पाठः । Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org