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उमाणयोगद्दारे अणुभाग उदीरणा
( १७३
सगसरीरभंगो। समचउरससंठाणस्स उदीरणा मूलसरीरे भवपच्चइया आहारसरीरस्स उत्तरसरीरं विउव्विदतिरिक्ख- मणुस्साणं च सव्र्व्वेसि परिणामपच्चइया । सेसपंचसंठणाणमुदीरणा भवपच्चइया । छण्णं संघडणाणमुदीरणा भवपच्चइया । वण्ण-गंधरसणामाणमुदीरणा देव - णेरइयागं भवपच्चइया, तिरिक्ख- मणुस्साणं परिणामपच्चsar | सीgor-frद्ध हुक्खाणमुदीरणा देव णेरइयाणं भवपच्चइया, तिरिक्ख- मणुस्साणं परिणामपच्चइया । कक्खड - गरुआणं उदीरणा एयंतभव : पच्चइया । मउअ-लहुआमुदीरणा आहारसरीरस्स उत्तरं विउव्विदस्स परिणामपच्चइया, सेसाणं भवपच्चइया । चदुण्णमाणुपुव्वीणमुदीरणा भवपच्चइया । अगुरुअलहुअ-थिराथिर - सुहासुहाणमुदीरणा देव णेरइयाणं भवपच्चइया, तिरिक्ख - मणुस्साणं परिणामपच्चइया । उवघादादावुस्सास- अप्पसत्थविहाय गइ-तस थावर - बादर - सुहुम-साहारण-पज्जत्तापज्जत्तदुभग- दुस्सर - अणादेज्ज - अजसकित्ति -- णीचागोदाण- मुदीरणा एयंतभवपच्चइया । परघादुदीरणा आहारसरीरस्स उत्तरं विउब्विदस्स च परिणामपच्चइया, अण्णत्थ भवपच्चइया । उज्जोवुदीरणा उत्तरं विउव्विदस्स परिणामपच्चइया, सेसाणं भवपच्च
। पत्थविहायगइ-पत्तेयसरीर-सुस्सराणं परघादभंगो। णिमिण- तित्थयर- पंचतराइयाणमुदीरणा परिणामपच्चइया । सुभग-आदेज्ज - जसगित्ति Q - उच्चागोदाणमुदीरणा
अनुसार है | समचतुरस्रसंस्थानकी उदीरणा मूल शरीरमें भवप्रत्ययिक होती है, और आहारकशरीरी तथा उत्तर शरीरकी विक्रिया करनेवाले सभी तिर्यंचों व मनुष्योंके उसकी उदीरणा परिणामप्रत्ययिक होती है। शेष पांच संस्थानोंकी उदीरणा भवप्रत्ययिक होती है। छह संहननोंकी उदीरणा भवप्रत्ययिक होती है । वर्ण, गन्ध व रस नामकर्मोंकी उदीरणा देवों व नारकियोंके भवप्रत्ययिक तथा तिर्यंचों व मनुष्योंके परिणामप्रत्ययिक होती है । शीत, उष्ण, स्निग्ध और रूक्षकी उदीरणा देवों व नारकियोंके भवप्रत्ययिक तथा तिर्यंचों व मनुष्योंके परिणाम प्रत्ययिक होती है । कर्कश और गुरु स्पर्शनामकर्मोंकी उदीरणा सर्वथा भवप्रत्ययिक है । मृदु और लघु नामकर्मोंकी उदीरणा आहारकशरीरी तथा उत्तरशरीरकी विक्रिया करनेवाले के परिणामप्रत्ययिक और शेष जीवोंके भवप्रत्ययिक होती है । चार आनुपूर्वियोंकी उदीरणा भवप्रत्ययिक होती है । अगुरुलघु, स्थिर, अस्थिर, शुभ और अशुभ प्रकृतियोंकी उदीरणा देवों और नारकियोंके भवप्रत्ययिक तथा तिर्यंचों और मनुष्योंके परिणामप्रत्ययिक होती है । उपघात, आतप, उच्छ्वास, अप्रशस्त विहायोगति, त्रस, स्थावर, बादर, सूक्ष्म, साधारण, पर्याप्त, अपर्याप्त, दुर्भग, दुस्वर, अनादेय, अयशकीर्ति और नीचगोत्रकी उदीरणा सर्वथा भवप्रत्ययिक है । परघातकी उदीरणा आहारकशरीरी एवं उत्तर शरीरकी विक्रिया करनेवालेके परिणामप्रत्ययिक तथा अन्यत्र भवप्रत्ययिक होती है । उद्योतकी उदीरणा उत्तर शरीरकी विक्रिया करनेवाले जीवके परिणामप्रत्ययिक तथा शेष जीवोंके भवप्रत्ययिक होती है । प्रशस्त विहायोगति, प्रत्येकशरीर और सुस्वरकी प्ररूपणा परघातके समान है । निर्माण, तीर्थंकर और पांच अन्तरायकी उदीरणा परिणामप्रत्ययिक है । सुभग, आदेय, यशकीर्ति और ऊंच गोत्रकी उदीरणा गुणप्रतिपन्न जीवोंमें परिणाम -
काप्रतौ ' परिणामपच्चया ण, तापतो 'परिणामपच्चया (ण) ।' इति पाठः ।
काप्रती ' एवं तब्भव' इति पाठः ।
* ताप्रती ' अजगित्ति' इति पाठ: ।
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