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उवक्कमाणुयोगद्दारे अणुभागउदीरणा
( १७९ बंधण-संघादणामाणं सरीरभंगो ।
पसत्थवण्ण-गंध-रसाणं कस्स? चरिमसमयसजोगिस्स । अप्पसत्थाणं कस्स? उक्कस्ससंकिलिट्ठस्स । णिद्ध-उण्हाणं कस्स? चरिमसमयसजोगिस्स । सीद-ल्हुक्खाणं कस्स ? उक्कस्ससंकिलिस्स । मउअ-लहुआणं कस्स ? आहारसरीरेण पज्जत्तयदस्स संजदस्स । कक्खड-गरुआणं कस्स ? तिरिक्खस्स अट्ठवासाउअस्स अट्ठवासाणमंते वट्टमाणस्स।
णिरयाणुपुव्वीणामाए कस्स ? तेत्तीसं सागरोवमियस्स रइयस्स बिसमयतब्भवत्थस्स तप्पाओग्गसंकिलिट्ठस्स। मणुसाणुपुवीणामाए कस्स? तिपलिदोवमियस्स मणुस्सस्स बिसमयतब्भवत्यस्त । तिरिक्खाणुपुवीणामाए कस्स ? तिरिक्खस्स अट्टवस्सियस्स बिसमयतब्भवत्थस्स । देवाणुपुवीणामाए कस्स? देवस्स तेत्तीसं सागरोवमियस्स बिसमयतब्भवत्थस्स ।
अगुरुअलहुअ-थिर-सुभ-सुभग-सुस्सर-आदेज्ज-जसगित्ति-तित्थयर-णिमिणुच्चागोदाणमुक्कस्सिया उदीरणा कस्स? चरिमसमयसजोगिस्स*। उवघादणामाए कस्स? तेत्तीसं
अपने शरीरके समान है।
प्रशस्त वर्ण, गन्ध और रसकी उत्कृष्ट उदीरणा किसके होती हैं ? वह अन्तिम समयवर्ती सयोग केवलीके होती है । उन अप्रशस्त वर्णादिकोंकी उत्कृष्ट उदीरणा किसके होती है? वह उत्कृष्ट संक्लेशको प्राप्त जीवके होती है। स्निग्ध और उष्ण स्पर्शकी उत्कृष्ट उदीरणा किसके होती है ? वह अन्तिम समयवर्ती सयोगीके होती है । शीत और रूक्षकी उत्कृष्ट उदीरणा किसके होती है ? वह उत्कृष्ट संक्लेश युक्त जीवके होती है । मृदु और लघुकी उत्कृष्ट उदीरणा किसके होती है ? वह आहारशरीरसे पर्याप्त हुए संयत जीवके होती है । कर्कश और गुरुकी उत्कृष्ट उदीरणा किसके होती है ? वह आठ वर्षकी आयुवाले व आठ वर्षों के अन्तमें वर्तमान तिर्यंच जीवके होती है।
___ नरकानुपूर्वी नामकर्मकी उत्कृष्ट उदीरणा किसके होती है? वह तत्प्रायोग्य संक्लेशसे संयुक्त तेतीस सागरोपम प्रमाण आयुवाले नारकी जीवके तद्भवस्थ होनेके द्वितीय समयमें होती है। मनुष्यानुपूर्वी नामकर्मकी उत्कृष्ट उदीरणा किसके होती है? वह तीन पल्योपम प्रमाण आयुवाले मनुष्यके तद्भवस्थ होनेके द्वितीय समयमें होती है । तिर्यग्गतिप्रायोग्यानुपूर्वी नामकर्मकी उत्कृष्ट उदीरणा किसके होती है ? वह आठ वर्षकी आयुवाले तिर्यंच जीवके तद्भवस्थ होनेके द्वितीय समयमें होती है। देवानुपूर्वी नामकर्मकी उत्कृष्ट उदीरणा किसके होती है ? वह तेतीस सागरोपम प्रमाण आयुवाले देवके तद्भवस्थ होनेके द्वितीय समयमें होती है।
___ अगुरुलघु, स्थिर, शुभ, सुभग, सुस्वर, आदेय, यशकीर्ति, तीर्थकर, निर्माण और ऊंच गोत्रकी उत्कृष्ट उदीरणा किसके होती है ? वह अन्तिम समयवर्ती सयोग केवलीके होती है ।
* ताप्रती 'पज्जत्तयदसंजदस्स इति पामः। ४ कक्खा -गरु-गंधयणा-स्थी-पुम-संठाण-तिरियणामाणं ।। पंचिदिओ तिरिक्वो अमवा नटुनासाओ ।। क. प्र. ४, ६३. जोगते सेसाणं सुभाणमियरासि चउसु वि
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