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छक्खंडागमे संतकम्मं
अंतरं भुजगार - अप्पदर अवट्टिदाणं णत्थि अंतरं । एवमंतरं समत्तं ।
अप्पा बहुअं - भुजगार - अप्पदरउदीरया तुल्ला थोवा । अवट्ठिदउदीरया असंखेज्जगुणा । एवमप्पा बहुगं समत्तं ।
मोहणीयस्स सामित्तं वुच्चदे - भुजगार- अप्पदर अवट्टिदाणमुदीरओ को होदि ? अण्णदरो सम्माइट्ठी मिच्छाइट्ठी वा । अवत्तव्वउदीरओ को होदि ? मणुसो वा मसणी वा देवो वा सम्माइट्ठी । एवं सामित्तं समत्तं ।
एयजीवेण कालो - भुजगारउदीरओ जहण्णेण एगसमओ, उक्कस्सेण चत्तारि समया । कुदो? वेद- कसाय-भय-दुगंछासु कमेण उदिण्णासु चदुष्णं समयाणमुवलंभादो । अधवा सेडीदो परिवदमाणस्स हस्स- रदीहि सह एक्को, भएण एक्को, दुगंछाए एक्को, कालगदस्स एक्को, एवं चत्तारि समया । अप्पदरस्स जहण्णमेगसमओ, उक्कस्सं तिण्णि समया । अवट्ठिदस्स जहण्णेण एगसमओ, उक्कस्सेण अंतोमुहुत्तं । अवत्तव्वस्स Store से एगसमओ । एवं कालो समत्तो ।
एयजीवेण अंतरं भुजगारस्स जहण्णेण एगसमओ, उक्कस्सेण अंतोमुहुत्तं । एवमप्पदर-अवट्टिदाणं । अवत्तव्वं जहणमंतोमुहुत्तं, उक्कस्समुवड्ढपोग्गलपरियहं । एवमंतरं समत्तं ।
अन्तर- भुजाकार, अल्पतर और अवस्थित उदीरणाओंका अन्तर नहीं है । इस प्रकार अन्तर समाप्त हुआ ।
अल्पबहुत्व - भुजाकार और अल्पतर उदीरक दोनों तुल्य होकर स्तोक हैं । अवस्थित उदीरक उनसे असंख्यातगुणे हैं । इस प्रकार अल्पबहुत्व समाप्त हुआ ।
मोहनीयकर्मके स्वामित्वकी प्ररूपणा की जाती हैं- भुजाकार, अल्पतर और अवस्थित उदीरणाओंका उदीरक कौन होता है ? अन्यतर सम्यग्दृष्टि और मिथ्यादृष्टि उनका उदीरक होता है । अवक्तव्य उदीरक कौन होता है ? सम्यग्दृष्टि मनुष्य, मनुष्यनी और देव उसका उदीरक होता । इस प्रकार स्वामित्व समाप्त हुआ ।
एक जीवकी अपेक्षा काल- भुजाकार उदीरकका काल जघन्यसे एक समय और उत्कर्षसे चार समय है, क्योंकि, वेद, कषाय, भय और जुगुप्सा प्रकृतियोंकी क्रमसे उदीरणा होनेपर चार समय पाये जाते हैं । अथवा श्रेणिसे नीचे गिरते हुए जीवके हास्य व रतिके साथ एक समय, भय के साथ एक समय, जुगुप्साके साथ एक समय, तथा मरणको प्राप्त हुएका एक समय इस प्रकार चार समय पाये जाते । अल्पतरका काल जघन्यसे एक समय और उत्कर्षसे तीन समय है। अवस्थितका काल जघन्यसे एक समय और उत्कर्ष से अन्तर्मुहूर्त प्रमाण है । अवक्तव्यका जघन्य व उत्कृष्ट काल एक समय है । इस प्रकार काल समाप्त हुआ ।
एक जीवकी अपेक्षा अन्तर- भुजाकारका अन्तर जघन्यसे एक समय और उत्कर्ष से अन्तर्मुहूर्त मात्र है । इसी प्रकार अल्पतर और अवस्थित उदीरणाका अन्तर है । अवक्तव्य उदीरणाका अन्तर जघन्यसे अन्तर्मुहूर्त और उत्कर्षसे उपार्ध पुद्गलपरिवर्तन प्रमाण है । इस प्रकार अन्तर समाप्त हुआ ।
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