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________________ ९८ ) छक्खंडागमे संतकम्मं अंतरं भुजगार - अप्पदर अवट्टिदाणं णत्थि अंतरं । एवमंतरं समत्तं । अप्पा बहुअं - भुजगार - अप्पदरउदीरया तुल्ला थोवा । अवट्ठिदउदीरया असंखेज्जगुणा । एवमप्पा बहुगं समत्तं । मोहणीयस्स सामित्तं वुच्चदे - भुजगार- अप्पदर अवट्टिदाणमुदीरओ को होदि ? अण्णदरो सम्माइट्ठी मिच्छाइट्ठी वा । अवत्तव्वउदीरओ को होदि ? मणुसो वा मसणी वा देवो वा सम्माइट्ठी । एवं सामित्तं समत्तं । एयजीवेण कालो - भुजगारउदीरओ जहण्णेण एगसमओ, उक्कस्सेण चत्तारि समया । कुदो? वेद- कसाय-भय-दुगंछासु कमेण उदिण्णासु चदुष्णं समयाणमुवलंभादो । अधवा सेडीदो परिवदमाणस्स हस्स- रदीहि सह एक्को, भएण एक्को, दुगंछाए एक्को, कालगदस्स एक्को, एवं चत्तारि समया । अप्पदरस्स जहण्णमेगसमओ, उक्कस्सं तिण्णि समया । अवट्ठिदस्स जहण्णेण एगसमओ, उक्कस्सेण अंतोमुहुत्तं । अवत्तव्वस्स Store से एगसमओ । एवं कालो समत्तो । एयजीवेण अंतरं भुजगारस्स जहण्णेण एगसमओ, उक्कस्सेण अंतोमुहुत्तं । एवमप्पदर-अवट्टिदाणं । अवत्तव्वं जहणमंतोमुहुत्तं, उक्कस्समुवड्ढपोग्गलपरियहं । एवमंतरं समत्तं । अन्तर- भुजाकार, अल्पतर और अवस्थित उदीरणाओंका अन्तर नहीं है । इस प्रकार अन्तर समाप्त हुआ । अल्पबहुत्व - भुजाकार और अल्पतर उदीरक दोनों तुल्य होकर स्तोक हैं । अवस्थित उदीरक उनसे असंख्यातगुणे हैं । इस प्रकार अल्पबहुत्व समाप्त हुआ । मोहनीयकर्मके स्वामित्वकी प्ररूपणा की जाती हैं- भुजाकार, अल्पतर और अवस्थित उदीरणाओंका उदीरक कौन होता है ? अन्यतर सम्यग्दृष्टि और मिथ्यादृष्टि उनका उदीरक होता है । अवक्तव्य उदीरक कौन होता है ? सम्यग्दृष्टि मनुष्य, मनुष्यनी और देव उसका उदीरक होता । इस प्रकार स्वामित्व समाप्त हुआ । एक जीवकी अपेक्षा काल- भुजाकार उदीरकका काल जघन्यसे एक समय और उत्कर्षसे चार समय है, क्योंकि, वेद, कषाय, भय और जुगुप्सा प्रकृतियोंकी क्रमसे उदीरणा होनेपर चार समय पाये जाते हैं । अथवा श्रेणिसे नीचे गिरते हुए जीवके हास्य व रतिके साथ एक समय, भय के साथ एक समय, जुगुप्साके साथ एक समय, तथा मरणको प्राप्त हुएका एक समय इस प्रकार चार समय पाये जाते । अल्पतरका काल जघन्यसे एक समय और उत्कर्षसे तीन समय है। अवस्थितका काल जघन्यसे एक समय और उत्कर्ष से अन्तर्मुहूर्त प्रमाण है । अवक्तव्यका जघन्य व उत्कृष्ट काल एक समय है । इस प्रकार काल समाप्त हुआ । एक जीवकी अपेक्षा अन्तर- भुजाकारका अन्तर जघन्यसे एक समय और उत्कर्ष से अन्तर्मुहूर्त मात्र है । इसी प्रकार अल्पतर और अवस्थित उदीरणाका अन्तर है । अवक्तव्य उदीरणाका अन्तर जघन्यसे अन्तर्मुहूर्त और उत्कर्षसे उपार्ध पुद्गलपरिवर्तन प्रमाण है । इस प्रकार अन्तर समाप्त हुआ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001814
Book TitleShatkhandagama Pustak 15
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1994
Total Pages488
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size12 MB
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