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उवक्कमाणुयोगद्दारे भुजगारुदीरणा ढाणाणमेयजीवेण अंतरं णाणाजीवेहि भंगविचओ कालो अंतरमप्पाबहुअंच जाणिदूण वत्तव्वं । गोदस्स पत्थि ट्ठाणउदीरणा । अंतराइयस्स एक्कं चेव द्वाणं । एवं ट्ठाणपरूवणा समत्ता ।
एत्तो भुजगारुदीरणा वुच्चदे । तं जहा- दंसणावरणीयस्स अत्थि भुजगारअप्पदर-अवट्ठिदउदीरणाओ, अवत्तव्वउदीरणा णत्थि । एवं परूवणा समत्ता।
एत्थ सामित्तं-भुजगार-अप्पदर-अवट्टिदाणं को उदीरगो? अण्णदरो मिच्छाइट्ठी सम्माइट्ठी वा। एवं सामित्तं समत्तं ।
कालो- भुजगार-अप्पदराणं जहण्णुक्कस्सेण एगसमओ। अवट्ठिदस्स जहण्णेण एगसमओ, उक्कस्सेण अंतोमुहुत्तं । एवं कालो समत्तो।
___ अंतरं- एयजीवेण भुजगार-अप्पदराणमंतरं जहण्णुक्कस्सेण अंतोमुहत्तं । अवट्टिदउदीरणंतरं जहण्णुक्कस्सेण एगसमओ । एवमंतरं समत्तं ।
णाणाजीवेहि भंगविचओ वुच्चदे । तं जहा- भुजगार-अप्पदर-अवट्टिदउदीरया णियमा अत्थि । एवं णाणाजीवेहि भंगविचओ समत्तो।
कालो- भुजगार-अप्पदर-अवट्ठिदाणं सव्वद्धा । एवं कालो समत्तो।
अन्तर, नाना जीवोंकी अपेक्षा भंगविचय, काल, अन्तर और अल्पबहुत्वको जानकर प्ररूपणा करना चाहिये । गोत्र कर्मकी स्थानउदीरणा सम्भव नहीं है । अन्तराय कर्मका एक ही स्थान है। इस प्रकार स्थानप्ररूपणा समाप्त हुई।
यहां भुजाकार उदीरणाका कथन करते हैं । यथा- दर्शनावरणीय कर्मकी भुजाकार अल्पतर और अवस्थित उदीरणायें है; अवक्तव्य उदीरणा नहीं है। इस प्रकार प्ररूपणा समाप्त हुई।
यहां स्वामित्व-भुजाकार, अल्पतर और अवस्थित उदीरणाओंका उदीरक कौन है ? अन्यतर मिथ्यादष्टि और सम्यग्दष्टि जीव उनका उदीरक है। इस प्रकार स्वामित्व समाप्त हुआ।
काल-भुजाकार और अल्पतर उदीरणाओंका काल जघन्य और उत्कर्षसे एक समय मात्र है। अवस्थित उदीरणाका काल जघन्यसे एक समय और उत्कर्षसे अन्तर्मुहूर्त प्रमाण है। इस प्रकार काल समाप्त हुआ।
अन्तर-एक जीवकी अपेक्षा भुजाकार और अल्पतर उदीरणाओंका अन्तर जघन्यसे व उत्कर्षसे अन्तर्मुहूर्त मात्र है । अवस्थित उदीरणाका अन्तर जघन्य व उत्कर्षसे एक समय मात्र है। इस प्रकार अन्तर समाप्त हुआ।
नाना जीवोंकी अपेक्षा भंगविचयकी प्ररूपणा की जाती है। यथा-भुजाकार, अल्पतर और अवस्थित उदीरक नियमसे हैं। इस प्रकार नाना जीवोंकी अपेक्षा भंगविचय समाप्त हुआ।
काल- भुजाकार, अल्पतर और अवस्थित उदीरणाओंका काल सर्वदा है । इस प्रकार काल समाप्त हुआ।
.ताप्रती ' भुजगारअप्पदराणमंतरं जहणुक्कस्सेण एगसमओ' इति पारः। Jain Education International
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