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छक्खंडागमे संतकम्मं
वण्ण-गंध-रस-फास- अगुरुअलहुअ - उवघाद - परघाद- उस्सास-पसत्यविहायगइ-तस - बादरपज्जत्त - पत्तेयसरीर-थिराथिर - सुहासुह-सुभग-सुस्सर आदेज्ज- जसकित्तिणिमिण- तित्थयरं चेदि एदाओ एक्कत्तीसपयडीओ तित्थयरो उदीरेदि । एदस्स कालो जहणेण वासपुधत्तं, उक्कस्सेण गब्भादिअट्टवस्सेहि ऊणा पुव्वकोडी । सेसाणं द्वाणाणं कालो + for araat |
देवगदीए एक्कवीस-पंचवीस- सत्तावीस (अट्ठावीस - एगुणतीस उदीरणट्ठाणाणि होंति । तत्थ एक्कवीसाए पयडिपरूवणं कस्सामो । तं जहा- देवगड पंचिदियजादितेजा - कम्मइयसरीर-वण्ण-गंध-रस- फास - देवगइपाओग्गाणुपुब्बी - अगुरुअलहुअ-तसबादर- पज्जत्त-थिराथिर - सुहासुह-सुभग-आदेज्ज - जसगित्ति- णिमिणं चेदि । एदस्स ठाणस्स कालो जहणेण एगसमओ, उक्कस्सेण बे समया । सरीरे गहिदे आणुपुव्वीमवणेण वेडव्वियसरीर-समचउरससंठाण वे उव्वियसरीरंगोवंग-उवघाद-पत्तेयसरीरेसु पक्खित्तेसु पणुवीसाए ट्ठाणं होदि । सरीरपज्जतीए पज्जत्तयदस्स परघाद-पसत्थविहायगदी पक्खित्तासु सत्तावीसाए ट्ठाणं होदि । आणापाणपज्जत्तीए पज्जत्रायदस्स उसासे पविट्ठे अट्ठावीसाए ट्ठाणं होदि । भासापज्जत्तीए पज्जत्तयदस्स सुस्सरे पविट्ठे एगुणतोसाए ट्ठाणं होदि । एदस्स ट्ठाणस्स कालो जहण्णेण अंतोमुहूतूणदसवस्ससहस्साणि, उक्कस्सेण अंतोमुहुत्तूणतेत्तीसं सागरोवमाणि । एसि
संहनन, वर्ण, गन्ध, रस, स्पर्श अगुरुलघु, उपघात, परघात, उच्छ्वास, प्रशस्त विहायोगति, त्रस, बादर, पर्याप्त, प्रत्येकशरीर, स्थिर, अस्थिर, शुभ, अशुभ, सुभग, सुस्वर, आदेय, यशकीर्ति, निर्माण और तीर्थंकर; इन इकतीस प्रकृतियोंकी उदीरणा तीर्थंकर करते हैं । इसका काल जघन्यसे वर्षपृथक्त्व और उत्कर्षतः गर्भसे लेकर आठ वर्षोंसे हीन एक पूर्वकोटि प्रमाण है । शेष स्थानोंके कालका कथन जानकर करना चाहिये ।
देवगति में इक्कीस, पच्चीस, सत्ताईस, अट्ठाईस और उनतीस; ये पांच उदीरणास्थान होते हैं । उनमें इक्कीस प्रकृति रूप स्थानकी प्रकृतियोंकी प्ररूपणा करते हैं । यथा- देवगति, पंचेन्द्रिय जाति, तेजस व कार्मण शरीर, वर्ण, गन्ध, रस, स्पर्श, देवगतिप्रायोग्यानुपूर्वी, अगुरुलघु, त्रस, बादर, पर्याप्त, स्थिर, अस्थिर, शुभ, अशुभ, सुभग, आदेय, यशकीर्ति और निर्माण । इस स्थानका काल जघन्यसे एक समय और उत्कर्षसे दो समय मात्र है। शरीरके ग्रहण कर लेनेपर आनुपूर्वीको कम करके वैक्रियिकशरीर, समचतुरस्रसंस्थान, वैक्रियिकशरीरांगोपांग, उपघात और प्रत्येकशरीर; इन पांच प्रकृतियोंको मिलानेपर पच्चीस प्रकृति रूप स्थान होता है। शरीरपर्याप्तिसे पर्याप्त होनेपर परघात और प्रशस्त विहायोगति, इन दो प्रकृतियोंको उपर्युक्त प्रकृतियोंमें मिला देने से सत्ताईस प्रकृति रूप स्थान होता है । आनप्राणपर्याप्ति से पर्याप्त होनेपर उच्छ्वास प्रकृतिके प्रविष्ट होनेसे अट्ठाईस प्रकृति रूप स्थान होता है । भाषापर्याप्ति से पर्याप्त होनेपर सुस्वरके प्रविष्ट होने से उनतीस प्रकृतिरूप स्थान होता है । इस स्थानका काल जघन्यसे अन्तर्मुहूर्त कम दस हजार वर्ष और उत्कर्ष से अन्तर्मुहूर्त कम तेतीस सागरोपम प्रमाण है । इन स्थानों का एक जीवकी अपेक्षा
काप्रतौ ' सेसाणं कालो' इति पाठः ।
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काप्रतौ ' सत्ताविस इति पाठः ।
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