________________
उवक्कमाणुयोगद्दारे उत्तरपयडिउदीरणाए सत्थाणसंणियासो
(७५
सादमुदीरेंतो असादस्स अणुदीरओ, असादमुदीरेंतो सादस्स अणुदीरओ। मिच्छत्तं उदीरेंतो सम्मत्त-सम्मामिच्छत्ताणमणुदीरओ, अणंताणुबंधिस्स सिया उदीरओ सिया अणुदीरओ, संजोजिदअगंताणुबंधीणमावलियामेत्तकालमुदीरणाभावादो। जदि उदीरओ कोह-माण-माया-लोहाणं सिया उदीरगो। अपच्चक्खाणपच्चक्खाण-संजलणकसायाणं णियमा उदीरओ। एदेसि बारसण्हं कसायाणं एक्केक्कं पडुच्च सिया उदीरगो। तिण्णिवेद-हस्स-रदि-अरदि-सोगाणं सिया उदीरओ, तिण्णं वेदाणमेक्कदरस्स वेदस्स हस्स-रदि-अरदि-सोगजुगलेसु एक्कदरस्स जुगलस्स णियमा उदीरओ। भय-दुगुंछाणं सिया उदीरओ।
सम्मत्तमुदीरेंतो मिच्छत्त-सम्मामिच्छत्ताणं अणंताणुबंधीणं च णियमा अणुदीरगो, अपच्चक्खाण-पच्चक्खाणकसायाणं सिया उदीरओ, जदि उदीरओ अट्ठण्णं कसायाणं सिया उदीरओ। संजलणस्स णियमा उदीरओ, तस्सेव चदुण्णं कसायाणं सिया उदीरगो । तिण्णं वेदाणं सिया उदीरओ, तिण्णं वेदाणमेक्कदरस्स णियमा उदीरओ। हस्स-रदि-अरदि-सोगाणं सिया उदीरओ, दोण्णं जुअलाणमेक्कदरस्स णियमा उदीरओ। भय-दुगुंछाणं सिया उदीरओ।
सम्मामिच्छत्तमुदीरेंतो सम्मत्त-मिच्छत्त-अणंताणुबंधीणं णियमा अणुदीरगो।
सातावेदनीयकी उदीरणा करनेवाला असाताका अनुदीरक और असाताकी उदीरणा करनेवाला साताका अनुदीरक होता है। मिथ्यात्वकी उदीरणा करनेवाला सम्यक्त्व और सम्यग्मिथ्यात्वका अनुदीरक तथा अनन्तानुबन्धीका कदाचित् उदीरक और कदाचित् अनुदीरक होता है, क्योंकि, अनन्तानुबन्धी कषायोंका संयोग हो जानेपर संयोगके समयसे लेकर आवली मात्र काल तक उदीरणा सम्भव नहीं है। यदि उनका उदीरक होता है तो क्रोध, मान, माया और लोभका कदाचित् उदीरक होता है। अप्रत्याख्यान, प्रत्याख्यान, व संज्वलन कषायोंका नियमसे उदीरक होता है। फिर भी इन बारह कषायोंमें एक एककी अपेक्षा कर कदाचित् उदीरक होता है । तीन वेद, हास्य, रति, अरति और शोकका कदाचित् उदीरक होता है। परंतु तीन वेदोंमेंसे किसी एक वेदका एवं हास्य-रति और अरति-शोक इन युगलोंमेंसे किसी एक युगलका नियमसे उदीरक होता है। वह भय और जुगुप्साका कदाचित् उदीरक होता है।
सम्यक्त्व प्रकृतिको उदीरणा करनेवाला मिथ्यात्व, सम्यग्मिथ्यात्व व अनन्तानुबन्धियोंका नियमसे अनदीरक होता है। परन्तु अप्रत्याख्यान व प्रत्याख्यान कषायोंका कदाचित उदीरक होता है । यदि वह उनका उदीरक है तो आठ कषायोंका कदाचित् उदीरक होता है। संज्वलनका नियमसे उदीरक होता है। किन्तु वह उसीकी ( संज्वलन ) चार कषायोंका कदाचित् उदीरक होता है। तीन वेदोंका कदाचित् उदीरक होता है, किन्तु इन्हीं तीनों वेदोमेंसे किसी एक वेदका नियमसे उदीरक होता है । हास्य, रति, अरति और शोकका वह कदाचित् उदीरक होता है; किन्तु इन दोनों युगलोंमें से किसी एक युगलका नियमसे उदीरक होता है। भय व जुगुप्साका वह कदाचित् उदीरक होता है सम्यग्मिथ्यात्वकी उदीरणा करनेवाला सम्यक्त्व, मिथ्यात्व और अनन्तानुबन्धी कषायोंका For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org
Jain Education International