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उवक्कमाणुयोगद्दारे मोहणीयउदीरणट्ठाणपरूवणा
एदासु दोसु गाहासु भासिदासु मोहणीयसामित्तं समप्पदि । एवं सामित्तं समत्तं ।
एयजीवेण कालो- एक्किस्से पवेसओ केवचिरं कालादो होदि? जहण्णेण एगसमओ, उक्कस्सेण अंतोमुहुत्तं। दोण्णं पवेसओ जहण्णण एगसमओ, उक्कस्सेण अंतोमुहुत्तं। चदुण्णं पवेसयस्स जहण्णेण एगसमओ, उक्कस्सेण अंतोमुहुत्तं । पंचण्णं पवेसयस्स जहण्णेण स्थान मिथ्यादृष्टिके बतलाये गये हैं वे इस प्रकारसे सम्भव हैं- मिथ्यात्व, अनन्तानुबन्धिचतुष्कमेंसे एक, अप्रत्याख्यानचतुष्क मेंसे एक, प्रत्याख्यानचतुष्कमें से एक, संज्वलनचतुष्कमेंसे एक, तीन वेदोंमेंसे कोई एक, हास्य रति और अरति-शोकमेंसे एक युगल, तथा भय व जुगुप्सा; इन दस प्रकृतियोंका उदीरणास्थान मिथ्यादृष्टि गुणस्थानमें पाया जाता है। इन दस प्रकृतियोमें भय व जुगुप्सामेंसे किसी एकके विना नौ प्रकृतियोंका स्थान होता है, भय व जुगुप्सा इन दोनोंके विना आठ प्रकृतियोंका स्थान होता है; तथा भय, जुगुप्सा व कोई एक अनन्तानुबन्धी कषाय इन तीन प्रकृतियोंके विना सातका स्थान होता है। ये तीन स्थान भी मिथ्यादृष्टिके ही सम्भव हैं। उपर्युक्त दस प्रकृतियोंके स्थानमेंसे एक अनन्तानुबन्धी कषायको कम करके मिथ्यात्व प्रकृतिके स्थानमें सम्यग्मिथ्यात्वके ग्रहण करनेपर नौ प्रकृतियोंका स्थान होता है । इसमें भय व जुगुप्सामेंसे एकके विना आठका, तथा दोनोंके विना सातका स्थान होता है । ये तीन उदीरणास्थान सम्यग्मिथ्यादृष्टि गुणस्थानमें ही सम्भव हैं। इन तीनों स्थानमेंसे सम्यग्मिथ्यात्वको कम करके अनन्तानबन्धी कषायको जोड देनेपर भी जो नौ, आठ व सात प्रकृतियोंके तीन उदीरणास्थान होते हैं उनका स्वामी सासादनसम्यग्दृष्टि होता है । सम्यक्त्व प्रकृति, एक अप्रत्याख्यान कषाय, एक प्रत्याख्यान कषाय, एक संज्वलन कषाय, एक वेद, हास्यादिमेंसे एक युगल तथा भय व जुगुप्सा प्रकृतिको ग्रहण कर नौका; भय व जुगुप्सामेंसे एकके विना आठका, इन दोनों के ही विना सातका, तथा उपशमसम्यग्दृष्टि एवं क्षायिकसम्यग्दृष्टिकी अपेक्षा सम्यक्त्व प्रकृतिको भी छोडकर छहका; ये चार उदीरणास्थान अविरतसम्यग्दृष्टि गुणस्थानमें पाये जाते हैं। अविरतसम्यग्दृष्टिके इन चार उदीरणास्थानोंमें से एक अप्रत्याख्यान कषायको कम कर देनेपर जो आठ, सात, छह और पांच प्रकृतियोंके चार उदीरणास्थान होते हैं उनका स्वामी संयतासंयत होता है। इसके उक्त चारों स्थानोंमेंसे एक प्रत्याख्यान कषायको कम कर देनेपर जो सात, छह, पांच और चार प्रकृतियोंके चार उदीरणास्थान होते हैं प्रमत्त और अप्रमत्तमें वे सब तथा अपूर्वकरणमें सातके बिना तीन स्थान पाये जाते हैं। संज्वलनचतुष्कमेंसे एक और तीन वेदोंमेंसे एक इन दो प्रकृतियोंका स्थान, तथा एक मात्र अन्यतर संज्वलन प्रकृतिका स्थान, ये दो स्थान अनिवृत्तिकरण गुणस्थान में प्राप्त होते हैं। तीन प्रकृतियोंके स्थानकी सम्भावना ही नहीं है। तथा सूक्ष्म लोभकी अपेक्षा एक प्रकृतिक स्थान सूक्ष्मसाम्पराय गुणस्थानमें भी होता है, इतना यहां विशेष जानना चाहिये ।
इन दो गाथाओंकी प्ररूपणा करनेपर मोहनीय कर्मका स्वामित्व समाप्त होता है । इस प्रकार स्वामित्व समाप्त हुआ।
- एक जीवकी अपेक्षा काल- एक प्रकृतिक स्थानका उदीरक कितने काल रहता है ? वह जघन्यसे एक समय और उत्कर्षसे अन्तर्मुहूर्त काल तक रहता है। दो प्रकृतिक स्थानका उदीरक जघन्यसे एक समय व उत्कर्षसे अन्तर्मुहूर्त काल तक रहता है । चार प्रकृतिक स्थानके उदीरकका
काल जघन्यसे एक समय और उत्कर्षसे अन्तर्मुहर्त मात्र है। पांच प्रकृतिक स्थानके उदीरकका Jain Education International
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