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उवकमाणुयोगद्दारे उत्तरपयडिउदीरणाए णाणाजीपेहि कालो (७३ असादस्स सिया सव्वे अणुदीरया, अणुदीरया च उदीरओ च, अणुदीरया च उदीरथा* च।
__ सम्मामिच्छत्तस्स सिया सव्वे जीवा अणुदीरया, अणुदीरया च उदीरओ च, अणुदीरया च उदीरया च । एवमेत्य तिण्णि भंगा वत्तव्वा । सेससत्तावीसमोहपयडीणं णियमा उदीरया च अणुदीरया च अस्थि । एवं सम्वेसिमाउआणं । णवरि देवणिरयाउआणं । अणुदीरया भयणिज्जा। णामस्स परियत्तमाणपयडीणमाहारसरीरआणुपुग्वितियवज्जाणं सव्वजीवा णियमा उदीरया च अणुदीरया च अस्थि । आहारआणुपुग्वितियाणं सिया सव्वे जीवा अणुदीरया, अणुदीरया च उदीरओ च, अणुदीरया च उदीरया च । एवं तिण्णि भंगा। उच्चा-णीचागोदाणं णियमा उदीरया च अणुदीरया च । एवं णाणाजीवेहि भंगविचओ समत्तो। ___णाणाजीवेहि कालो वुच्चदे- आहारसरीर-आणुपुग्वितिय-सम्मामिच्छत्तं मोत्तूण सेससव्वकम्माणं उदीरया सव्वद्धं । आहारसरीरस्स उदीरआ जहण्णुक्कस्सेण अंतोमुहुत्तं । आणुपुन्वितियस्स जहण्णेण एयसमओ, उक्कस्सेण आवलियाए असंखेज्जदिभागो। सम्मामिच्छत्तस्स जहण्णेण अंतोमुहत्तं, उक्कस्सेण पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागो ।
सहित ) त्रस जीव हैं वे असातावेदनीयके कदाचित् सब अनुदीरक, बहुत अनुदी रक व एक उदीरक, तथा बहुत अनुदीरक व बहुत उदीरक भी होते हैं ।
___सम्यग्मिथ्यात्वके कदाचित् सब जीव अनुदीरक, अनुदीरक बहुत उदीरक एक, तथा अनुदीरक बहुत व उदीरक भी बहुत होते हैं। इस प्रकारसे यहां तीन भंगोंको कहना चाहिये । शेष सत्ताईस मोहनीय प्रकृतियोंके नियमसे बहुत उदीरक और बहुत अनुदीरक भी हैं। इसी प्रकार सब आयुओंके विषयमें कथन करना चाहिये। विशेष इतना है कि देवायु और नारकायुके अनुदीरक भजनीय हैं। आहारकशरीर और तीन आनुपूवियोंको छोडकर नामकर्मकी शेष परिवर्तमान प्रकृतियोंके सब जीव नियमसे उदीरक और अनुदीरक भी हैं। आहारकशरीर और तीन आनुपूर्वियोंके कदाचित् सब जीव अनुदीरक, अनुदीरक बहुत व उदीरक एक, तथा अनुदीरक बहुत व उदीरक भी बहुत होते हैं। इस प्रकारसे तीन भंग हैं। ऊंच व नीच गोत्रोंके नियमसे बहुत उदीरक और बहुत अनुदीरक भी होते हैं। इस प्रकार नाना जीवोंकी अपेक्षा भंगविचय समाप्त हुआ।
नाना जीवोंकी अपेक्षा कालकी प्ररूपणा की जाती है- आहारकशरीर, तीव आनुपूर्वी और सम्यग्मिथ्यात्वको छोडकर शेष सब कर्मोके उदीरक सब काल रहते हैं। आहारकशरीरके उदीरक जघन्य व उत्कर्षसे अन्तर्मुहूर्त काल रहते हैं। तीन आनुपूर्वियोंके उदीरक जघन्यसे एक समय और उत्कर्षसे आवलीके असंख्यातवें भाग काल तक रहते हैं। सम्यग्मिथ्यात्वके उदीरक जघन्यसे अन्तर्मुहूर्त और उत्कर्षसे पल्योपमके असंख्यातवें भाग तक रहते हैं। नाना जीवोंकी
काप्रती 'अणुदीरया' इति पाठः । * काप्रतौ 'उदीरिया' इति गठ: ।
काप्रती 'देवणिरया उआ' इति पाठः। 9 काप्रती 'उदीरअ', ताप्रती · उदीरओ'इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only
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