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सत्य-संगीत
[ २ ] सत्येश्वर तुम त्रिभुवनगामी । सकल चराचर - अन्तर्यामी । सही धोके स्वामी | निराकार हो पर भक्तांके मन हो अखिलाकार । मेरे जीवन में रसधार, बहाकर करदो बेडापार || [ ३ ]
नात अहिंसाके सहचर तुम । लोकोंके ब्रह्मा हरि हर तुम । विश्वरगके हो नटवर तुम ।
जन्ममरण जीवनमय हो तुम गुणगणलीलागार 1 मेरे जीवनमें रसधार, बहाकर करदो बेडा पार ||
[ ४ ]
वेदरानाधार तुम्हीं हो । सूत्र पिटकके सार तुम्हा हो । ईसाकी मुखधार तुम्हीं हो।
राम रोममें कोटि कोटि हैं तीर्थंकर अवतार । जीवन में रसधार, वहाकर करदो बेडापार ||