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सत्य-संगीत
निज निजके प्रतिबिम्ब तुल्य तू दिया दिखाई || मानों दर्पन-प्रभा रूप तेरा घर आई ||१४||
617 NAMAN
मुरली की ध्वनि कहीं, कहीं पर चक्रनुदर्शन । कहीं पुष्पसा हृदय, कहीं पर पन्यरसा मन ॥ कहीं मुक्त संगीत, कहीं योद्धाका गर्जन । कहीं डाँडिया रास, कहीं दुष्टोंका तर्जन ॥१५॥
कहीं गोपियों सग प्रेमका शुद्ध प्रदर्शन | भाई बहिनों के समान लीलामय जीवन || कहीं मल्लसे युद्ध कहीं बच्चोंसी बातें | बालक लीला कहीं, कहीं दुष्टों पर धातें ॥ १६ ॥
कहीं राजके भोग कहीं पर सूखे चावल । कहीं स्वर्णप्रासाद कहीं विपदाओं का दल || कहीं मेरु सा अचल कहीं बिजली सा चंचल | वस्त्र भिखारी कहीं, कहीं अवलाका अचल ॥१७॥
कहीं सरलतम-हृदय कहीं पर कुटिल भयकर । कहीं विष्णुसा शान्त कहीं प्रल्येश्वर शकर ॥ कहीं कर्मयोगेश जगद्गुरु या तीर्थंकर । दुर्जनका यमराज सज्जनों का क्षेमकर ||१८||
मानव जीवन के अनेक रूपोंका स्वामी । सत्यदेव भगवती अहिंसाका अनुगामी || अगणित ज्ञान रत्न ये विश्वको दिये । मुझको बस तेरे अखड पदचिह्न चाहिये ॥ १९ ॥