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सत्य संगीत क्यिोर
कब तक देव बाट वतादो कैसे तुम्हें बुलाऊँ । __ यदि मै आऊँ पाम तुम्हारे तो किस पथसे आऊँ ॥ कब तक तुमले दृर बनादो होगा मुझको रहना ।
निर्बल कयो पर अनन्त कष्टो का बोझा सहना ॥ १ ॥ भरा हुआ यह हृदय तुम्हारे बिना बना है मना !
जब जब याद तुम्हारी आती होता है दुख दृना ॥ सखा सखा अग हुआ है फीका पडा वढन है ।
कुवा कर्कट भग हुआ है गॅदला हुआ सदन है ।। २ ।। तुम ही हो सौन्दर्य जगत के अवले के अवलम्बन । ___मन-मन्दिर के देव तुम्ही हो दुखियाके जीवनधन | जीवन-रजनी के नाशि तुम हो तुम बिन जीवन फीका ।
तुम बिन काल कडेगा से इस लम्बी रजनीका ॥ ३ ॥ तुन घटक अन्तर्वानी हो ज्ञान तम्हें नव वाने ।
किन प्रकार दुखों ने कटनी है दुख्यिा की रात ।। निर भी मुझको नहीं बताते कंत तुमको पाऊँ ।
इस अनन्त दुखमा दोजख को कैसे स्वर्ग बनाऊँ ॥ ४ ॥ दिग्नी नुश्का ननि तुम्हारी है कोने कोने में ।
फिर भी हाथ न आने क्या फल है छलिया होनेने । सुन्न आर दात हा मत्र किर में क्या क्या ग।
निस निराकर इन मास कवनकजन्य धाऊँ॥५॥