Book Title: Satya Sangit
Author(s): Darbarilal Satyabhakta
Publisher: Satyashram Vardha

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Page 122
________________ ११० ] सत्य संगीत क्यिोर कब तक देव बाट वतादो कैसे तुम्हें बुलाऊँ । __ यदि मै आऊँ पाम तुम्हारे तो किस पथसे आऊँ ॥ कब तक तुमले दृर बनादो होगा मुझको रहना । निर्बल कयो पर अनन्त कष्टो का बोझा सहना ॥ १ ॥ भरा हुआ यह हृदय तुम्हारे बिना बना है मना ! जब जब याद तुम्हारी आती होता है दुख दृना ॥ सखा सखा अग हुआ है फीका पडा वढन है । कुवा कर्कट भग हुआ है गॅदला हुआ सदन है ।। २ ।। तुम ही हो सौन्दर्य जगत के अवले के अवलम्बन । ___मन-मन्दिर के देव तुम्ही हो दुखियाके जीवनधन | जीवन-रजनी के नाशि तुम हो तुम बिन जीवन फीका । तुम बिन काल कडेगा से इस लम्बी रजनीका ॥ ३ ॥ तुन घटक अन्तर्वानी हो ज्ञान तम्हें नव वाने । किन प्रकार दुखों ने कटनी है दुख्यिा की रात ।। निर भी मुझको नहीं बताते कंत तुमको पाऊँ । इस अनन्त दुखमा दोजख को कैसे स्वर्ग बनाऊँ ॥ ४ ॥ दिग्नी नुश्का ननि तुम्हारी है कोने कोने में । फिर भी हाथ न आने क्या फल है छलिया होनेने । सुन्न आर दात हा मत्र किर में क्या क्या ग। निस निराकर इन मास कवनकजन्य धाऊँ॥५॥

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