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जय सत्य अहिंसे
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जय सत्य अहिंसे
जय सत्य अहिंसे जगत्पिता जगमाता । कल्याणधाम अभिराम सकलसुखदाता ||
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तुम चिदाकार निर्मूति अनवतारी हो ।
पर भक्त - हृदय में गुणमय नर-नारी हो । तुम जननी - जनक - समान प्रेम-धारी हो ॥ भगवान भगवती हो अघ - तमहारी हो ॥
तुममें वात्सल्य विवेक मूर्त्त बनजाता । जय सत्य अहिंसे जगत्पिता जगमाता ॥१॥ निर्मल मति का सन्देश सुनाया तुमने । सनम सुख का साम्राज्य दिखाया तुमने || वीरत्वपूर्ण समता को गाया तुमने । भाई भाई में प्रेम सिखाया तुमने ||
है वरद पाणि भक्तों को अभय बनाता । जय सत्य अहिंसे जगत्पिता जगमाता ॥ २ ॥
तुम हो अवर्ण पर नाना वर्ण तुम्हारे । तुम रजतचन्द्रिका सम जगके उजयारे ॥ है दिव्य ज्ञानकी ज्योति नयन रत्नारे | तपनीय वर्ण गुणमय भूषण है प्यारे ॥
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है अग अग वैभव अनत सरसाता । जय सत्य अहिंसे जगत्पिता जगमाता ॥ ३ ॥