Book Title: Satya Sangit
Author(s): Darbarilal Satyabhakta
Publisher: Satyashram Vardha

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Page 125
________________ प्यालेवाले [११३ . तृने उस पर नशा चढ़ा कर । बेचारे को दीन बनाकर ॥ उसके सभी इरादे तने आज नोड टाले । ढया कर ए प्यालबाले ॥ [६ [ आग्विर है यह कितना जीवन । इसके लिये पाप मे क्यो मन । वन्धु बन्धु है सभी प्रेम से प्रेम-गीत गाले ॥ टया कर ए प्यालेवाले ॥ [७] इतनी तृष्णा बढी भला क्यो । मरख, करने पाप चला क्यों । खाना है दो कौर प्रेमसे आकर त खाल | ढया कर ए पालेवाले ॥ (८) छोड छोड यह नशा चटाना । मानव का अज्ञान बढ़ाना । इतना पाप बोझ करता क्या जान ले टाले । दया कर ए प्यालेबान्ने ॥

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