Book Title: Satya Sangit
Author(s): Darbarilal Satyabhakta
Publisher: Satyashram Vardha

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Page 133
________________ मेरी भूल [ १२१ [५] महाकालने चक्र घुमाया । तब ऊपर से नीचे आया । नदन बन की जगह खडे देखे चहुँ ओर बबूल । हुई थी कैसी मेरी भूल || [६] तेरी याद हुई मुझको तब । काल लूट ले गया मुझे जब । की जड चेतन जगने मेरे दुख में टालमटूल । हुई थी कैसी मेरी भूल । [७] तब तेरी चरण-स्मृति आई । ___ मैंने अश्रवार वरसाई । आखो का मल वहा दिखा सच्चे जीवन का मूल । हुई थी कैसी मेरी भूल ।। [८] दूर हुआ तेरा विछोह तब । मद उतरा हट गया मोह तब । विधप्रेमके रग रँगा मैं पाकर तेरी धूल । तभी सुधरी वह मेरी भूल ।

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