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महात्मा ईसा
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महात्मा ईसा
अन्धश्रद्धाओं का था राज्य, ढोग करते थे ताडव नृत्य | ईश-सेवकका रखकर वेष, बने शैतान राज्य के भृत्य ॥
मचाया था सब अन्धाधुध पाप करते थे परम प्रमोद ।
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हुआ तब ही ईमा अवतार, मात मरियमकी चमकी गोद ॥ १ ॥ प्रकम्पित हुआ दुष्ट शैतान हुआ ढोंगोका भडाफोड | मनुज सब बनने लगे स्वतंत्र, रूढियोंके दुर्बन्धन तोड ॥ जगत्का जागृत हुआ विवेक, सभीने पाया सच्चा ज्ञान । शुष्क पाडित्य हुआ बलहीन, शब्द - कीटोंने खोया मान ॥२॥ पुजारीकी पूजाऍ व्यर्थ, बनी थीं मृतकतुल्य निष्प्राण ।
व्यर्थ चिल्लाते थे सब लोग, चाहते थे चिल्लाकर त्राण ॥ मिटाया तूने यह सब शोर, शातिका दिया सभीको ज्ञान ।
' प्रार्थना करो हृदय से बधु, न ईश्वर के है बहरे कान ॥३॥ दुःखको, समझ रहे थे धर्म, झेलते थे सत्र निष्फल कष्ट ।
वेषियों की थी इच्छा एक, किसी भी तरह अग हो नष्ट ॥ व्यर्थ जाता था मनुज शरीर, न था पर सेवासे कुछ काम ।
गदगी फैली थी सब ओर, न था सदसद्विवेकका नाम ॥ ४ ॥