Book Title: Satya Sangit
Author(s): Darbarilal Satyabhakta
Publisher: Satyashram Vardha

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Page 115
________________ विधवा के आंसू [१०३ कार मुंज अभागिन पाहता, कहता कोर्ड रॉट । मान ननंद कहने लगती है, 'बन बैठी है मांड ॥ निशि दिन मुनती बोल कुबोल | अन इन अंसुओं का क्या माल ॥ ६॥ अब न शान्टकी भी जन है आग गुडा-राज । घर घर में है चर्चा मेग गली गली आवाज ॥ बनता है निंदा का ढोल । अब इन अनुओं का क्या मोल ॥ ७ ॥ कान में बैठी रहनी है सब की सीग्व मग्वि । हमा टुकडा मिल जाना ज्या मिली कहीं से भीख ॥ जब सत्र करत मीज किलाल । अब इन असुओं का क्या मोल ॥ ८ ॥ वधक रही है भीतर भट्टी ऊपर अश्रु--प्रवाह । अरमाना का जला जलाकर बना रही हूँ 'आह' देवा भीतर के पट खोल । अब इन अनुओं का क्या मोल ॥ १ ॥ मुर्दे जलकर बुल कहाते पर मैं जीवित धूल । मवके निकट मोत रहती पर मुझे गई वह भूल || आजा तू ही मुझ से बोल । अब इन असओं का क्या मोल ॥ १०॥

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