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सत्य संगीत
विधवा के आँस
अब इन अॅमुओं का क्या मोल ? बेशर्मी से भिंगा रहे हैं ये निर्लज कपोल ।
अब इन अंसुओं का क्या मोल ॥ १॥ उस दिन ये मोती से जब था सोने का समार । इन पर न्यौछावर होता या कभी किमीका पार ॥
झडते ये फूलों से बोल ।
अब इन असुओं का क्या मोल ॥ २॥ गगा यमुना सी बहती हैं इन ऑखों से वार । प्रेम-पुजारी गया, यहाँ जो लता गोता मार ॥
अब खोर जल की कलील ।
अब इन असुओं का क्या मोल ॥ ३॥ आते ये कभी न नांचे जो अचल की ओर । आज भिंगाने है वे भूतल, वन वर्या घनघोर ।।
वन बन गली गली मे डोल |
अब इन असुओ का क्या मोल ॥ ४ ॥ सारा जग अवा बन बैठा मानो ऑखें फोट । देख न ममता बहा रही क्या हृदय निचोड निचोड ॥
निदय । अब तो आँख खोल। अब टन अनुआ का क्या मोल ॥ ५॥