Book Title: Satya Sangit
Author(s): Darbarilal Satyabhakta
Publisher: Satyashram Vardha

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Page 114
________________ १०२ ] सत्य संगीत विधवा के आँस अब इन अॅमुओं का क्या मोल ? बेशर्मी से भिंगा रहे हैं ये निर्लज कपोल । अब इन अंसुओं का क्या मोल ॥ १॥ उस दिन ये मोती से जब था सोने का समार । इन पर न्यौछावर होता या कभी किमीका पार ॥ झडते ये फूलों से बोल । अब इन असुओं का क्या मोल ॥ २॥ गगा यमुना सी बहती हैं इन ऑखों से वार । प्रेम-पुजारी गया, यहाँ जो लता गोता मार ॥ अब खोर जल की कलील । अब इन असुओं का क्या मोल ॥ ३॥ आते ये कभी न नांचे जो अचल की ओर । आज भिंगाने है वे भूतल, वन वर्या घनघोर ।। वन बन गली गली मे डोल | अब इन असुओ का क्या मोल ॥ ४ ॥ सारा जग अवा बन बैठा मानो ऑखें फोट । देख न ममता बहा रही क्या हृदय निचोड निचोड ॥ निदय । अब तो आँख खोल। अब टन अनुआ का क्या मोल ॥ ५॥

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