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___मॅझदार
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मझझकार
नौका पहुंची है मॅझवार । हूँ खेवटिया, डॉड नहीं है, टूटी है पतवार ।
नौका पहुँची है मॅझवार ॥१॥ इधर किनारा उधर किनारा, पर दोनों ही दूर । वीच बीचमे चट्टानें हैं, हो नौका चकचूर ॥
कैसे होगा वेडा पार ।
नौका पहुंची है मॅझधार ॥२॥ मगर मच्छ चहुंओर भरे हैं, यदि हो थोडी भूल । उलट पुलट तब सब हो जावे रहे न चुटकी चूल ||
उसपर दुनिया कहे गमार ।
नौका पहुंची है मॅझवार ॥३॥ वैभव की कुछ चाह नहीं है और न यम से भीति । केवल भीख यही है मेरी रहे तुम्हारी प्रीति ॥
दुख में करूँ न हाहाकार ।
नौका पहुची है मॅझधार ॥॥४॥ डूब न जाये मेरे यात्री करना उनका त्राण । जलदेवी को बलि देगा मैं अपने ही प्राण ॥
मेरे यात्री पहुंचे पार । नौका पहुँची है मॅझधार ॥५॥
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