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सत्य-संगीत
न कुछ भी सग लाये थे,चलेगा सगमें भी क्या । पडा रह जायगा यों ही, न आना है न जाना है।
ठिकाना पूछते हो क्या० ॥८॥ प्रलोभन क्या लुभावेगा ? करेगी चोट क्या विपदा ? जगह वह छोड दी हमने, जहाँ उनका निशाना है ।।
ठिकाना पूछते हो क्या० ॥९॥ न साढे तीन हाथों से, अविक कोई जगह पाता । पसारे हाथ कितने ही, मगर क्या हाथ आना है ?
ठिकाना पूछते हो क्या० ॥१०॥ करेंगे दीन की सेवा, बनेगे विश्व-सेवक हम । दुखीजनके कटे दिलपर, हमें मरहम लगाना है ॥
ठिकाना पूछते हो क्या० ॥१२॥ करेंगी रूढियाँ ताडब अहकारी सतावेंगे । मगर उनके प्रहारों को, हमें मिट्टी बनाना है ।
ठिकाना पूछते हो क्या० ॥१२॥ बने जो मित्रजन कातिल, हमें पर्वा न है उनकी । हमारी यह तमन्ना है, कि अपना सिर कटाना है ।।
ठिकाना पूछते हो क्या० ॥१३॥ न दुश्मन अब रहा कोई, हमारे दोस्त हैं सब ही । सभी के प्रेममय मन पर, हमे कुटिया बनाना है ।।
ठिकाना पूछते हो क्या० ॥१४॥