Book Title: Satya Sangit
Author(s): Darbarilal Satyabhakta
Publisher: Satyashram Vardha

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Page 108
________________ सत्य संगीत क्या करूं? अगर सफलता पा न सकू तो, दुनिया कहती है नादान, विजयी बनू सफलता पाऊ, तो कहती है धूर्त महान ॥१॥ निंदक भ्रष्ट विरोधी जनको, क्षमा करू कहती कमजोर' इनको अगर ठिकाने लाऊ, तो कहती 'निष्करण कठोर ॥२॥ अगर कष्ट कुछ सहन करू तो, कहती है 'फैलाता नाम' वचा रहू यदि व्यर्थ कष्टसे, कहती है 'करता आराम' ॥३॥ दान करू तो कहने लगती, 'था कैसा यह सग्रह-गील, मुंह देखी बातें करता था, करता था सत्पथमें ढील ||४ दान न करू बोलती दुनिया, देता है झूठा उपदेश, त्याग सिखाता दुनिया भरको, अपने में न त्यागका लेश' ॥५॥ अगर फकीर बनू तो कहती, 'पेट-पूर्ति का खोला द्वार, दुनिया से वक्के खाकर अब, बन बैठा सेवक लाचार' ॥६॥ अगर र धन से स्वतन्त्र मैं, कहती है 'भरकर निज पेट, त्याग त्याग चिल्लाता रहता, करता भोलों का आखेट' ॥७॥ अगर प्रेम से बात करू तो, कहती 'कैसा मायाचार। अगर उपेक्षा करू जगत से, तो कहती 'मदका अवतार |८| अगर युक्तियों से समझाऊ, कहती 'युक्ति तक सत्य प्राप्त करने मे कैस, हो सकती है युक्ति समर्थ ॥९॥ .. .. व्य थे.

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