________________
८६ ]
सत्य-संगीत
[४] मुख ऊपर मुसकान रहेगी,
और फकीरी शान रहेगी, नग्न सत्य की आन रहेगी,
सेवामय ससार । सखी, यह मिटने का त्यौहार ॥
[५] मिट्टीमें मिल जाना होगा, अपना रूप मिटाना होगा, मिटकर वृक्ष बनाना होगा,
होगा वेडा पार । सखी, यह मिटने का त्योहार ॥
[६] देना है जीवनका कणकण, यदि वाग्ना हो मिटने का प्रण, तो भेजा ह आज निमन्त्रण,
करना स्वीकार । सपी, यर मिटने का न्योहार ॥