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सत्य-संगीत
महात्मा बुद्ध न तेरी करुणा का था पार । तू या मन्य-पुत्र तेरा या बन्धु अखिल ससार ।
न तेरी करुणा का था पार । निर्धन सधन और नर-नारी ।
मूट विवेकी जनता सारी । पशु पक्षी भी मुदित किये तब औरों की क्या बात । किये झूठ हिंमा आदिक पापोंके घर उत्पात ॥
किया पापों का भडाफोड ।
धर्म तव आया बन्धन तोड । मिटा दीन, दर्वल, मनुजों के मुख का हाहाकार
न तेरी करुणा का था पार ॥१॥ न तेरी करुणा का था पार । करुणाशि ऊगा आलोकित हुआ निखिलससार । न०
अवलाएँ अञ्चल पसार कर ।
वोल उठी आआ करुणाधर ॥ नृतन आगाओं से सबका फला हृदयोद्यान । रुग्ण जगत् न पाया तुझको सच्चे वद्य समान ॥
हुए आशान्वित सारे लोग ।
छूटने लगा अधानिक रोग । पृथ्वी उठी पुकार, पुत्र ! अव हरले मेरा भार ।
न तेरा करुणा का था पार ॥२॥