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सत्य संगीत
विपढाऐं अपना भाग-रूर बतलाती। मन-मन्दिर में भारी समान मचाती । ताडव दिखलाती फिरती हैं मदमाती। धीरज विवेक बल तहस नहन कर जाती ।।
आओ जगल में मंगल हमें सिखाओ। भुभार-हरण के लिये परा पर आओ ॥
ये विद्यारह है जाट अमग्न्य प्रलोभन । है लूट रहे नव दिवाकर जदयन । निमल बात है. वर्तव्य चिरन्नन । करते हैं ये उदेस्य-हीन चल मन ।
आओ प्रयभना को अब मार हटाभ। अमर-हरण के निर. रा पर आओ।
तुम मर अहंमा के हो पुत्र दुर्ग। नगटगों के प्यारे ।। तुम र अनिबार।
नियन के । का जनाओ।
दु