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भगवन्
भगवन्
विजय हो बन्धुता की प्रेम का जयकार हो भगवन् । नहीं हो अब दुखी कोई परस्पर प्यार हो भगवन् ॥
[२] गरीबी रह नहीं पाय, अमौरी मे न वनमद हो । बढे सम्पत्ति अब सब की बढ़ा व्यापार हो भगवन् ।
अविद्या का अंधेरा यह, जगत मे रह नहीं पात्र । बढे सज्जान मानव ज्ञानका आगार हा भगवन् ।
[४] बने ज्ञानी सभी मानव सदाचारी विनय-धारी । न कोरे फेशनबुल या रंगोले यार हो भगवन् ।
[५] 'जरासी ओपडी भी हो सढा मदिर सुशिक्षा का । दया से पूर्ण सच्ची सभ्यता का द्वार हो भगवन् ।
अविद्या मूर्ति महिलाएँ कही भी रह नही पाये । बने ये भारती देवी कि स्वर्गागार हो भगवन् ।
[७] अभी सद्धर्म की नौका भँवर मे खा रही चक्कर । रखें उत्साह बल ऐसा कि बेडा पार हो भगवन् ।।