________________
३४ ]
संत्य संगीत
सदसद्विवेक का मूर्य तपे तमहारी । भगवान सत्य के दर्शन हो सुखकारी। वनजॉय स्वार्थ-त्यागी सब ही नरनारी ।
भगवती-अहिंसा-सेवक प्रेम-पुजारी ॥ वैकुण्ठ दिखाई दे भूतल पर आता | है भुवन-मोहनी पारी भारतमाता ॥ १२ ॥
हो सर्व-धर्म-समभाव सभी के मन में । यह जातिपॉति का रोग न हो जीवनमें । मानवता महके तेरे श्वास पवन मे ।
सप्रेम फले फले तेरे आँगन में ॥ गुलजार चमन वनजाय सकल सुखदाता । हे भवन-मोहनी प्यारी भारतमाता ॥ १३ ॥
arri,
मान