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भावना गीत
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( ३० )
छोटा सा यह जीवन मेरा, हो न किसी के सिर पर भार । रह परिश्रमशील सर्वदा, श्रम को कहू न सह न सकू दुर्बल दीनों पर, वलवानो के तत्पर रहू न्यायरक्षण मे, हरता रहू सहा ( ३१ )
पापाचार | अत्याचार |
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भूभार ॥
कापरता न फटकने पावे, बनू मोत से निर्भय बीर । प्राण हथेली पर लेकर मैं, बहू रहू विपदा मे धीर ॥ विरत विरोध उपेक्षा मिलकर, कर न सके साहसका नाश । कर न सके असफलताएँ भी, कार्यक्षेत्र मे मुझे
निराश ।
( ३२ )
पुरुषार्थ ।
परमार्थ ॥
धर्म अर्थ हो काम मोक्ष हो, रक्खू मै चारों एकागी जीवन न वनाऊ, सकल - समन्वय है सभी रसो का समय समय पर करता रहू उचित उपयोग | करुणा वीर हास्य वत्सलता, सब का निर्विरोध हो भोग || ( ३३ ) दुनिया की नाटकाला में, खेल सभी तरह के खेल । लेकिन पाप न आने पात्रे, हो न सुधा मे विनका मेल || कर्मों मे कोशल हो मेरे हो सत्र चिंताओ का अन्त । मुखमुद्रा कैसी भी हो पर, रहे हृदय मे हास्य अनन्त ॥ ( ३४ )
रहू अहिंसा की गोदी में, सत्य करे लालन न्याय नीतियों के कर तल पर, हो सदैव पालन
मेरा ।
नेरा ॥