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सत्य संगीत
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संग्रह की न लालसाएँ हों, पाऊं वन करदू मैं दान । साथ न आना साथ न जाता, फिर क्यों सग्रह क्यों अभिमान ।।
आत्मसंयम
(१८) पागल बना न पावे मुझका, जीवन-गत्र दुष्टतम क्रोध । क्षमा भाव हो सब पर मेरा, कल कुपथ का मैं अवरोध ॥ बनू पाप का ही वैरी मै, पापी को समझू बीमार । जिस की जैसी बीमारी हो, उसका वैसा हो उपचार ॥
बल यश बुद्धि विभव सुन्दरता कुल आदिक का न रहे मान । विनय-मूर्त होने को समझ, गौरव की सच्ची पहिचान ॥
आन्न-प्रशसा करू न मढवा ईया से मै कल न हाय । कभी न यह चरितार्थ कहं मैं, 'अधजल गगरी छलकत जाय।
(२०) हं दम्भ से दर मबदा. हो न तनिक भी मायाचार । टोगों को निर्मूल कर मै. माया-शून्य रहे आचार ॥ स्वाति लाभ के लालच मे में, नहीं कर झटा नप त्याग । अन्य टोंग या चकता में. थोडा भी न रहे अनुराग ॥
मन को निन्नति को. ममस गौच मे का मार । बनु बनाना सिर भी. कल न कृत अमृत चित्रार ॥ लिमाटीन बन्छ ग्यगयों को नमझं मोजन का मानान । गांव में अट लगाकर. कल नहीं पर का अपमान ॥