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सत्य !
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शास्त्रोने जिसको गाया। मुनियोने जिसे मनाया। तीर्थकरने जो पाया।
थी सब तेरी ही छाया । तू हे अडोल पर लोल लोल । मदिरके तू पट खोल खोल ॥ ४ ॥
तेरा ही टुकडा पाकर । बनते हैं धर्म--सुधाकर । करुणाकर मनमें आकर ।
हममे मनुष्यता लाकर । चित् शान्ति सुधारस घोल घोल मदिरके तू पट खोल खोल ॥ ५ ॥
पढी पुस्तके बहुत मगर ,
। मिल सका न मुझको सम्यग्ज्ञान । नाना आसन लगा लगाकर,
ध्यान किया पर लगा न ध्यान ।। दुनिया भरके मत्र जपे,
पर हुई नहीं दुखो की हानि । जपता यदि नि पक्ष हृदयसे,
सत्यदेव, मिलता सुख वानि ।।