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सत्य संगीत
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निर्वल बेचारे धुतकारे जाते है ॥ अबलाओ को है लोग लोग पीसते ऐसे चक्की के दोनों पाट अन्न को जैसे ॥ [ ९ ] बलवान स्वार्थ को धर्म धर्म कहता है । निर्बल मौनी वन सारे दुख सहता है ॥ समताभावों की हँसी उडायी जाती । है न्यायशीलता पद पद ठोकर खानी ॥ [ १० ]
तेरे पुत्रों ने था जो मार्ग दिखाया |
उस पर लोगों ने ऐसा जाल बिछाया । दलदल | खोकर बल |
सब भूले तुझको बना दलो का उसमे फँसते है मरते हैं [ ११ ]
अब है उदारता का न नाम भी बाकी | गाली खाती फिरती है आज वराकी || हर जगह मकुचितता है राज्य जमाती । जनता तेरा पथ छोड़ भागती जाती ॥ [१२]
टोगो ने वर्मासन भी छीन लिया है | धार्मिकता का भी चोला बदल दिया है |
नमल से भारी पाप न पूछे जाते ।
नियाप किरा पर सत्र ही ओख उठाने ॥