________________
१८]
सत्य संगीत
प्राणी प्राणी सब वन्धु वन्धु बन जावें । हो स्वार्थ त्यागका भाव सभीके मनमें । सर्वत्र दया सत्प्रेम रहे जीवन में ।।
[१८] अनुचित बन्धन तो एक भी न रह पारे ।
__ सर्वत्र हिताहित-बुद्धि मार्ग दिखलावे ॥ अपने अपने अधिकार रख सकें सब ही। होगा मुझको सतोप नाथ ! वस तब ही।
[१९] स्वामित्व न हो पशुवल-धनवल का सहचर ।
दानवता का अधिकार न मानवता पर ।। सच्चा सेवक ही बने जगत-अधिकारी स्वामित्व और सेवा हो। सहचारी ॥
[२०] रह सके न कुछ भी वैर हृदय के भीतर ।
वहजाय नयन के द्वार अश्रु वन वन कर ॥ हो सदा 'अहिंसा परमो धर्म 'की जय । अन्याय रूटियों अत्याचारों का क्षय ॥
[२१] सब धर्मों में समभाव देव हो मेरा ।
नि पक्ष हृदय में नाम मत्र हो तेरा ।। मैं देख देख कर चल चरण रज तेरी ।
दस एक कामना यही प्रभो है मेरी ।।