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२० ]
सत्यसंगीत भगवती अहिंसा
अपनी झोंकी दिखला जाः निर्दय स्वार्थ पूर्ण हृदयों में शाति सुधा वरसाजा ॥ अपनी. ॥
(१) तेरा वेष बनाकर आती,
तुझको ही बदनाम कराती; आकर के इस कायरता का भडा-फोड कराजा ॥ अपनी ॥
[२] वीर-पूज्य वीरों की माता.
तेरी कृपा वीर ही पाताः अकर्मण्य आलसी जनों को, यह सदेश सुनाजा।। अपनी.॥
(३)
अस्त्र गन के संचालन में,
आततायियों के ताडन में, तेरी गुप्त मूर्ति रहती है, बस आवरण हटाजा ॥ अपनी. ॥
(४) प्राणहीन पूजा या तप में.
दभ-पूर्ण माला के जप में: घोर स्वार्थ है आ कर बैठा, त चकचूर कराजा ॥अपनी ॥
सन्नता के रक्षण में न,
दुर्जनता के नक्षण में 7, गिविधल्पधारिणी अनिक, यह विवेक सिखलाजा ॥अपनी. ॥