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सत्य-संगीत
म० सत्य का सन्देश
निष्पक्ष और निर्लेप, वुद्धि
आकाश समान बनाओगे | भगवती अहिंसा की सेवा करप्रेम - वर्म अपनाओगे ॥ १ ॥
भूतल मे सब ही मित्र रहें
मन मे न शत्रुता लाओगे । तो फिर मैं तुम से दूर नहीं । घर घर मेरा घर पाओगे ॥ २ ॥
भ० अहिंसा का सन्देश
सब शान्त रहो सव शान्ति करो । दु स्वार्थ न मन में आने दो । रगडे झगडे सब दूर करो | जगको प्रेमी बन जाने दो ॥ १ ॥
दुर्जनता का सहार कंगे । मजनता को जय पाने दो।
हिंना का राज्य न आने दो । पर कायर मन कहलाने दो ॥ २ ॥