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सत्य संगीत
ननुप्प का पागव-भाव पारे । लगे इससि बलहीन मारे ॥
सुशीलता का पद है न बाकी ।
___ हुई बड़ी दुर्गति न्याय्यता की ॥५॥ ने सभी के मन स्वार्थिता से। __ भला रेंगे क्यो परमार्थिता से । ।
वढा अविश्वास अगान्तिकारी ।
हुए सभी चिन्तित-वृत्तिधारी ॥ ६ ॥ न देख पाई सुपमा तुम्हारी । दुखापहारी निज सौख्यकारी ॥ हुए हमारे गुण नष्ट सारे ।
मरे बने जीवित ही विचारे ॥ ७ ॥ पशुत्र के मन बने हुए हैं।
अगान्ति में निल मने हए हैं। ___रही न मैत्री अविवेक आगरा ।
वित्तियों ने दिनरात खाया ॥८॥ हुई हमारे मनम निराशा। कृपा करो ढेकर पूर्ण आया ॥ प्रसन्नता मे हलका महालो । विग का बन्धन तोड हाई ॥२॥
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