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कार्य नही होता है । तथा ऐसा ही अनुभव में भी आता है । फिर भी जो लोग - निमित्त न मिले तो कार्य नही होता ऐसी मान्यता मिथ्या है, ऐसा कहते हैं उनकी वे ही जाने जैन शासन से तो उनका कोई समर्थन होता नही है ।
शंका- जैनागम मे लिखा है कि:- क्रमभाविन: पर्यायाः अर्थात् पर्यायें एक के बाद एक क्रमशः होती हैं । जिस गुण की जिस समय जो पर्याय होनी है वही होती है । तब फिर अगर निमित्त न मिले तो वह कार्य (पर्याय) न हो यह कहना कैसे बन सकता है ।
उत्तर- यह तो ठीक है कि द्रव्य में उस द्रव्य के सभी गुण सदा एक साथ रहने वाले होते हैं परन्तु उसकी सभी पर्याये अथवा उसके एकगुण की भी सभी पर्याये एक साथ नहीं होतीं भिन्न भिन्न काल मे होती हैं क्रमवार उपजती है । किन्तु क्रम भी दो तरह का होता है एक अनुक्रम दूसरा व्यपक्रम । जैसे कि बालकपन के बाद युवापन और युवापन के बाद बृद्धपन चाता है यह तो अनुक्रम हुवा किन्तु जो दान्तों का गिरपड़ना या बालों का सफेद होना वृद्धपन में होता है । वह किसी किसी के कारण विशेष से जवानी में ही हो जाता है और किसी के वृद्ध अवस्था में भी नही होता । वृद्ध अवस्था में होने वाली दृष्टि की मन्दता किसी के जवानी में ही हो जाती है और फिर वृद्ध अवस्था के समय वापिस दिखने लगजाता है यह व्युत्क्रम हुआ करता है। एक रेलगाडी के वीस डब्बे अपनी साधारण