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सत्तमो भवो ]
नियतिसच्छहेण य कुंकुमराएण विजरियदेहा । सुरहिबहुवणवण कवोलकयपत्तलेहा य ॥५८७ ॥ हररइय विसेस विसे सभंगुर कयालयसणाहा । सविसेसपेच्छणिज्जा सोहियसं जमियधम्मेल्ला १५८८ । नेउररणामणिवलमहारकुंडलविभूसणेहिं च । पडवन्नचलण तियहत्थकंठसवणा मियंकमही ॥ ५८६ ।। धरियसि हिपिच्छविरइयकं चणमय दंडसाहुलिस मेया । बहुरयणभूसियं दंतघडियजंपाणमारूढा ॥५६०
ओ तं दद्दू पुव्वकय कम्मरुययाए समुप्पन्नो विसेणस्स मच्छरो, वडियं अहमज्झाणं । चितियं च णेणं । वावामि एवं दुरायारं । पउत्ता वावायगा । पत्तो य सेणकुमारो अमरणंदणं उज्जाणं । तं पुण सुसिद्धिपायवं उद्दाममाहवीलयालिंगियसहयारं बउलतरुकुसुमसुरहिगंधाय ड्डियभमंत भमरो लिमंजुगुजियर वावरियदिसं महल्लपाडलावडिय सुर हिकुसुमनियर पच्छाइय भूमिभाग
५८३
निजकान्तिच्छायेन (सदृशेण) च कुंकुमर गेण पिञ्जरित देहा । सुरभिबहुवर्णवर्णककपोलकृतपत्रलेखा च । ।। ५८७ । मनोहररचित विशेषक विशेषभङ, गुरकृताल कसनाथा । सविशेष प्रेक्षणीया शोभितसंयमितधम्मिला ॥ ५८८ ॥ नूपुररसनामणिवल यहा र कुण्डलविभूषणैश्च । प्रतिपन्नचर णत्रिक हस्तकण्ठश्रवणा मृगाङ्कमुखी ॥ ५८६ ॥ धृतशिखिपिच्छविरचितकाञ्चनमयदण्डसखी समेता । रत्नभूषितं दन्तघटितजम्पानमारूढा || ५६० ।
ततस्तां दृष्ट्वा पूर्वकृत कर्मगुरुकतया समुत्पन्नो विषेणस्य मत्सरः, वृद्धमधमध्यानम् । विन्तितं च तेन - व्यापादयाम्येतं दुराचारम् । प्रयुक्ता व्यापादकाः । प्राप्तश्च सेनकुमारोऽमरनन्दनम्द्यानम् । तत्पुनः सुस्निग्धपादपम्, उद्दाममाधवीलतालिङ्गितसहकारम्, बकुलतरुकुसुमसुरभिगन्धाकृष्टभ्रमद्भ्रमरालिमञ्जुगुञ्जितरवापूरितदिशं महत्पाटलापतितसुरभिकुसुमनिकरप्रच्छादित
अपनी दक्षिणागिरि कान्ति के समान कुंकुम के रंग से उसका शरीर पीला पीला हो रहा था। अनेक प्रकार सुगन्धित रंगों से उसके गालों पर पत्ररचना की गयी थी। उसके माथे पर मनोहर विशेष तिलक लगा था । वह घुंघराले बालों से युक्त थी, उसके बालों का सुशोभित बांधा हुआ जूड़ा विशेष रूप से देखने योग्य था, ( वह) चन्द्रमुखी चरण और हाथ, कण्ठ तथा कान में नूपुर, रसना, मणि चूड़ी, हार तथा कुण्डल ( इन ) आभूषणों को धारण किये हुए थी । मयूरपिच्छों को धारण किये हुए, रची हुई सोने की छड़ियों और सखियों से युक्त, अनेक रत्नों
भूषित, हाथीदाँत से निर्मित जम्पान (एक प्रकार की पालकी) पर वह सवार थी ।।५८७-५६० ॥
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अनन्तर उसे देखकर पूर्वकर्म की प्रबलता से विषेण को डाह हुई । नीचा ध्यान ( कुध्यान) बढ़ा। उसने सोचा इस दुराचारी को मार डालूं । मारनेवालों को प्रयुक्त किया। सेनकुमार अमरनन्दन उद्यान में गया । उस उद्यान के वृक्ष बहुत मनोहर थे। उत्कट माधवी लता से आम्रवृक्ष आलिंगित थे, बकुल ( मौलसिरी) के फूलों की सुगन्धित गन्ध से आकृष्ट होकर घूम रहे भौंरों की मधुर गुंजार की ध्वनि से दिशाएँ व्याप्त हो रही थीं। बहुत बड़े लाल लोध से गिरे हुए सुगन्धित पुष्पसमूह से भूमिभाग आच्छादित हो रहा था, नववधू का
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