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सत्तमो भवो]
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विहजायासमेओ एवंविहो पुरिसो समुवलखो ति। तेहि भणियं-'नोवलद्धो' । मिहो पियमणेहिहरे, भणियं मए 'अवदिसा खु एसा कुमारस्स'; ता एहि, रायउरवत्तिणीए लग्गामो त्ति । नियत्ता आसवारा। थेववेलाए य पच्चइयपुरिसहत्थम्मि पेसिऊण भोयणं आगओ साणदेवो । निवेइओ आसवारवुत्तंतो। कराविओ पाणवित्ति ।
अइक्कन्ते य वासरे अत्थमिए दिणयरम्मि नक्खत्तमालापसाहियाए नहयलसिरीए आणिओ सत्यनिवेसं। कओ उचिओवयारो। जामावसेसाए जामिणीए कुमाराएसेण विदिन्नं पयाणयं । समप्पियं पहाणजपाणं संतिमईए कुमारस्स य । गया कंचि भूमिभागं । आवासिओ सत्थो। निविटुं चेलहरयं । ठिया तत्थ संतिमई कुमारसेणो य । संपाडियं उचियकरणिज्ज।
एवं च अणवरयपयाणएहि वच्चमाणाणमइक्कंता कइवि वासरा। पत्ता दंतरत्तियाभिहाणं महाडवि । आवासिओ सत्थो। 'भयाणया अडवि' त्ति निविट्ठाई थाणयाई। पहायसमए य विसंसरिएसुं थाणएसुं सत्थलद्दणवावडेसु कम्मयरेसु आवस्सयकरणुज्जएहि आडियत्तिएहि अप्पतक्किया चेव
अश्ववाराः । पृष्टाश्च तैः सार्थिका:-भो ! न युष्माभिरेवंविधजायासमेत एवंविधपुरुषः समुपलब्ध इति । तैर्भ णितम् -नोपलब्धः । मिथो जल्पितमेभिः- अरे भणितं मया अपदिक् खल्वेषा कुमारस्य, तत एहि राजपुरवर्तिन्यां लगाम इति । निवृत्ता अश्ववाराः । स्तोकवेलायां च प्रत्ययितपुरुषहस्ते प्रेषयित्वा भोजनमागतः सानुदेवः । निवेदितोऽश्ववारवृत्तान्तः । कारितः प्राणवृत्तिम् ।
अतिक्रान्ते च वासरे अस्तमिते दिनकरे नक्षत्रमालाप्रसाधितायां नभस्तल श्रियामानीतः सार्थनिवेशम् । कृत उचितोपचारः । यामावशेषायां यामिन्यां कुमारादेशेन विदत्तं प्रयाणकम् । समर्पितं प्रधानजम्पानं शान्तिमत्याः कमारस्य च । गताः कञ्चिद भमिभागम। आवासितः सार्थः । निविष्टं चेलगहम । स्थिता तत्र शातिमती कमारसेनश्च । सम्पादितमूचितकरणीयम।।
एवं चानवरतप्रयाणकैर्वजतामतिक्रान्ताः कत्यपि वासराः । प्राता दन्तरनिकाभिधानां महाटवीम् । आवासितःसार्थः । 'भयानका अटवी' इति निविष्टानि स्थानकानि। प्रभातसमये च विसंसृतेषु (अपगतेषु) स्थानकेषु सार्थभारारोपणव्यापृतेषु कर्मकरेषु आवश्यककरणोद्यतेषु सुभटेषु अप्रतकितैव को इस प्रकार की स्त्री के साथ इस प्रकार का पुरुष तो नहीं मिला ?' उन्होंने कहा-'नहीं ।' इन घुड़सवारों ने आपस में कहा-'अरे; मैंने कहा था, यह कुमार का मार्ग नहीं है अतः आओ राजपुरी की ओर चलें।' घुड़सवार लौट गये। थोड़ी देर में विश्वस्त पुरुषों के हाथ भोजन भेजकर सानुदेव आया। (उसने) घुड़सवारों का वृत्तान्त निवेदन किया। भोजन कराया।
दिन बीत गया, सूर्य अस्त हो गया और जब नक्षत्रमाला से प्रसाधित आकाशमण्डल विशेष शोभायुक्त हो गया तब उन्हें वह व्यापारियों के पड़ाव पर लाया। (उनका) उचित सत्कार किया। रात्रि का प्रहर मात्र शेष रह जाने पर कुमार की आज्ञा से प्रयाण किया। शान्तिमती और कुमार को मुख्य जम्पान (पालकी) में बैठाया । थोड़ी दूर गये । व्यापारियों की टोली ने पड़ाव डाला। रावटी (चेलगृह) बाँधी । वहाँ पर कुमार सेन और शान्तिमती ठहर गये । योग्य कार्यों को किया ।
इस प्रकार निरन्तर चलते हुए कुछ दिन बीत गये। दन्त रत्निका नामक बहुत बड़ी पहाड़ी आयी । टोली ने पड़ाव डाला । पहाड़ी भयानक है-ऐसा सोचकर प्रहरियों को तैनात किया गया। प्रात:काल प्रहरियों को चले जाने पर जब मजदूर टोली के माल को चढ़ाने में लग गये, सुभट आवश्यक कार्यों के करने में उद्यत हो गये तो
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