Book Title: Samraicch Kaha Part 2
Author(s): Haribhadrasuri, Rameshchandra Jain
Publisher: Bharatiya Gyanpith

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Page 435
________________ नवमो भवो ] ८९५ सुलसमंजरीए भणियं-भयवं, केरिसाणि सुरविमाणाणि, केरिसा देवा, कोइसी वा तत्थ सायावेयणाओ। भयवया भणियं-धम्मसीले, सुण । ते णं विमाणा विचित्तसंठाणा सव्वरयणामया अच्छा सण्हा लण्हा वट्ठा मट्ठा नीरया निम्मला निप्पंका निक्कंकडच्छाया सप्पहा समिरीया सउज्जोवा पासादीया दरिसणिज्जा अभिरूवा पडिरूवा खेमा सिवा किंकरअमरदंडोवरक्खिया लाउल्लोवि(इ)यमहिया गोसीससरस (रत्त)चंदणदद्दरदिन्नपंचंगुलितला उवचियचंदणकल सा चंदणघडसुकयतोरणपडिदुवारदेसभागा आसत्तोसत्तविउलवट्टवग्धारियमल्लदामकलावा पंचवण्णसरससुरभिमक्कपुष्फपुंजोवयारकलिया कालागुरुपवरकुंदुरुक्कतुरुक्कधूवमघमतगंधुद्धयाभिरामा सुगंधवरगंधगंधिया गंधर्वाट्टमया अच्छरगणसंघसं(वि)किण्णा दिव्वतुडियसहसंपन्न (ण इय)ति । देवा उण मणहरविचित्तचिधा सुरूवा महिड्ढिया महज्जुइया महायसा महब्बला महाणुभावा महासोक्खा हारविराइयवच्छा कडयतुडियर्थभियभुया अंगयकुंडलमट्टगंडयलकण्णपोढधारी विइत्तहत्थाहरणा विचित्तमालामउली सुलसमजर्या भणितम्-भगवन् ! कीदृशानि सुरविमानानि, कोदशा देवाः, कीदृशी वा तत्र सातवेदना । भगवता भणितम् --धर्मशीले ! शृणु । तानि विमानानि विचित्रसंस्थानानि सर्वरत्नमयानि अच्छानि चक्ष्णाणि (मसृणानि) घृष्टानि मृष्टानि नीरजांसि निमलानि निष्पानि निष्कङ्कटच्छायानि सप्रभाणि, समरीचीनि सोद्योतानि प्रासादीयानि दर्शनीयानि, अभिरूपाणि प्रतिरूपाणि क्षेमाणि शिवानि किंकरामरदण्डोपरक्षितानि लेपितधवलितमहितानि गोशीर्षस रस रक्तचन्दनदर्द रदत्तपञ्चाङ गुलितलानि उपचितचन्दन कलशानि चन्दन घटसुकृततोरणप्रतिद्वारदेशभागानि आसक्तोत्सक्तविपुलवृत्तप्रलम्बितमाल्यदामव लापानि पञ्चवर्णसरससुरभिमवतपुष्पपुजोपचारकलितानि कालागुरुप्रवरकुन्दरुष्कतुरुष्कधूपमघायमानगन्धोद्धृताभिरामाणि सुगन्धवरगन्धगन्धितानि गन्धवतिभूतानि अप्सरोगणसंघ (वि)कीर्णानि दिव्यत्रुटितशब्दसम्पन्ना(प्रणदिता)नोति । देवाः पुनर्मनोहरविचित्रविह्नाः सुरूपा महद्धि का महाद्युतिका महाय गसो महाबला सुलसमंजरी ने कहा---'भगवन् ! देवविमान (स्वर्ग) कैसे होते हैं, देव कैसे होते हैं अथवा वहाँ पर सातवेदना (सुखरूप अनुभूति) कैसी होती है ?' भगवान् ने कहा--'धर्मशीले ! सुनो। वे विमान विचित्र आकार वाले, समस्त रत्नों से युक्त, स्वच्छ, चिकने, माँजे हुए, साफ किये हुए, धूलिरहित, निर्मल, कीचड़रहित, कांटों से रहित और छाया से युक्त स्थानवाले, प्रभायुक्त किरणों से युक्त, प्रकाशयुक्त, प्रसन्न, दर्शनीय, योग, सुन्दर, कल्याणमय, शिव, किंकर देवताओं के दण्ड से रक्षित (तथा) सफेद लेपन से महत्त्वपूर्ण होते हैं। गोरोचन और सरस लाल चंदन के धने हथेलियों के निशान बने होते हैं, चन्दन के कलश इकट्ठे रहते हैं, मेहराबदार द्वारों तथा (अन्य) प्रत्येक द्वार पर भलीभांति चन्दन के घड़े बने होते हैं, अत्यधिक गोल लम्बी मालाओं के समूह गुंथे रहते हैं, पाँच रंगों के सरस सुगंधित छोड़े हुए फूलों के समूह की सेवा से युक्त होते हैं, काला अगर, श्रेष्ठ कुन्द, रुष्क और तुरुष्क की धूप से भरी हुई गन्ध के बढ़ने से सुन्दर लगते हैं, अच्छी और उत्तम गन्ध से सुवासित अगरबत्तियों से युक्त होते हैं, अप्सराओं के समूह से व्याप्त रहते हैं, दिव्य वाद्यों के शब्दों से युक्त होते हैं । देव मनोहर, विचित्र चिह्नोंवाले, सुन्दर रूपवाले, महान् ऋद्धियोंवाले, महाद्युतिवाले, महान् यश, महान् बल, महान् Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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