Book Title: Sammedshikhar Mahatmya
Author(s): Devdatt Yativar, Dharmchand Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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प्रथमा
अथ
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कथ्यते कविनाधुना । शृणुध्यं साधयो जनाः । ।४१।।
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श्रेणिकवृत्तान्तः लोहाचार्यानुक्रमेण अन्वयार्थ अथ अधुना अब आगे. लोहाचार्यानुक्रमेण लोहाचार्य के कथनानुसार, श्रेणिकवृत्तान्तः = राजा श्रेणिक का वर्णन, कविना - कवि देवदत्त द्वारा, कथ्यते = कहा जाता है, साधवो जनाः ! = भो साधु- सज्जन पुरुषो, शृणुध्वं तुम सब सुनो। श्लोकार्थ - इससे आगे अब कवि लोहाचार्य मुनीश्वर के कथनानुसार राजा श्रेणिक का वृत्तान्त कह रहा है, जिसे सुनने का निवेदन सज्जन पुरुषों से उसने किया है।
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वाले एक प्रभावशाली भूतक नामक यक्ष जो महाबलशाली और दश लाख व्यन्तरों का स्वामी था, ने असहनीय, काले बादलों को समेटती घेरती हवा चलाई, जिस कारण सभी जगह अंधकार छा गया। तब उस यक्षकृत उपसर्ग को देखकर उस राजा श्रेणिक ने सम्मेदगिरि की तीर्थयात्रा रोक दी। तभी रानी चेलना ने अपने प्रिय राजा को कहा हे महाराज मैं केवलज्ञानी प्रभु भगवान् महावीर के वचनों को संशयहीन, पूर्ण सत्य और सर्वथा अटल ही मानती हूं। निश्चित ही अभी तुम्हारा सम्मेदशिखर की तीर्थयात्रा करने का समय योग नहीं है ।
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१७
लक्षयोजनविस्तारो वृत्ताकारो महीतले ।
जम्बूद्वीपो
महानास्ते साधुरत्नाकरस्सदा ।। ४२ ।।
सुदर्शनश्च तन्मध्ये उन्नतो लक्षयोजनः । तत्स्कन्धो दशसाहस्रयोजनैर्भुवने स्थितः ||४३|| मेरुस्तद्वत्तन्निकटस्थितैः ।
भूमेरुपर्यसौ
दृष्टो नवतिसाहस योजनैस्तुङ्गतां गतः ॥ ४४ ॥ ॥
अन्वयार्थ महीतले = पृथ्वी पर वृत्ताकारः = वृत्त के आकार वाला गोल थाली जैसा, लक्षयोजनविस्तारः = एक लाख योजन विस्तार