Book Title: Sammedshikhar Mahatmya
Author(s): Devdatt Yativar, Dharmchand Shastri
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
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मधू
सम्मेदशिखर यात्रा का विचार आज बूढ़ा होता जा रहा है, अर्थात् बहुत समय से सम्मेदशिखर सिद्धक्षेत्र की वन्दना करने की बात मैं सोच रहा हूं। क्या आज मैं अपनी बात साकार कर सकूंगा ? अब्रवीत्तं महावीर : यात्राकालोऽधुना ते न मया संवीक्ष्यते
शृणु
प्रथमा
श्रेणिकभूपते । शुभः ।। ३५ ।।
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नहीं.
अन्वयार्थ महावीरः - भगवान् महावीर ने तं उस राजा श्रेणिक को, अब्रवीत् = कहा, श्रेणिकभूपते हे श्रेणिक राजन् ! (त्वं तुभ), शृणु = सुनो, अधुना = इस समय, ते तुम्हारा, यात्राकालः = सम्मेदशिखर की वंदना के लिये यात्रा का समय, भया = मेरे द्वारा, शुभः = कल्याणप्रद, न - संवीक्ष्यले देखा जा रहा है । श्लोकार्थ - भगवान् महावीर ने राजा श्रेणिक को कहा कि हे राजन् ! अभी तुम्हारा सम्मेदशिखर की यात्रा करने का समय शुभ नहीं है। मेरे द्वारा यह सम्यक् देखा जा रहा है।
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प्रथमे नरके स्थानं निश्चयात्ते भविष्यति । श्रुत्वाऽप्रीतिप्रभोर्वाक्यं सोत्कण्ठयशतो नृपः ।। ३६ ।।
यात्रोद्योगं चकारासौ सम्मेदाख्यगिरिं प्रति । पर्वतोपरि यक्षोऽभूद् भूतको नामतो महान् ।। ३७ ।। दशलक्षव्यन्तराणां भूपतिः स महाबलः । चालितः श्यामपवनो दुस्तरस्तिमिराकृतिः ।। ३८ ।। दृष्ट्वा तमुपसर्गं स राजा यात्रां न्यवारयत् । तस्यासीच्चेलना राज्ञी सा तमाह प्रियं नृपम् || ३६ | महाराज ! महावीरकेवलज्ञानिनो वचः । सत्यमेवाचलं मन्ये ते यात्रायसरो न हि ||४०|| अन्वयार्थ निश्चयात् = निश्चय ही, ते तुम्हारा, स्थानं स्थान, प्रथमे नरके = पहिले नरक में भविष्यति = होगा,
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(इति
- इस
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