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रोम रोम रस पीजे : ललितप्रभ
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अन्धा अन्धा मात्र प्रकाश को नहीं देख सकता, ऐसी बात नहीं है, वह अन्धकार को भी नहीं देख पाता।
अपराध अपराध चाहे छिपकर हो या सरेआम, जहर तो देर-सवेर अपना प्रभाव दिखाएगा ही।
अपराधी अज्ञानता में किया गया अपराध क्षम्य है। बड़ा अपराधी तो वह है, जो ज्ञानी होते हुए भी गलतियां करता है।
अपराधी न्यायालय में भले ही अपराध-मुक्त घोषित हो जाये, पर अन्तर-आत्मा कभी सुख से सोने न देगी।
अपव्यय जो दिन में दिये जलाता है, वह रात को तेल कहाँ से पाएगा।
अपूर्ण वह मनुष्य अपनी परिपूर्णता में नहीं है, जिसके कदम तो हैं सभ्यता की देहरी पर, मगर मन है, फूहड़, असभ्य, खूखार जंगल के दलदल में।
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