Book Title: Rom Rom Ras Pije
Author(s): Lalitprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 27
________________ १२ ] रोम रोम रस पीजे : ललितप्रभ प्रात्म-ज्ञान आत्म-ज्ञान की सम्भावना जंगलों में रहने से भी अपने ही भीतर झांकने में ज्यादा है। आत्म-दर्शन स्वयं के सत्य को पहचानने के लिए किये जाने वाले प्रयत्न से बड़ा तप और कोई नहीं है। प्रात्म-पृच्छा स्वयं से ही पूछना 'मैं कौन हूँ', जीवन की नींव में अध्यात्म की पहली ईंट रखना है । आत्म-मूल्य विश्व-संवेदनाओं को आत्मसात् करने के लिए जीवनमूल्यों को महत्त्व दिया जाना चाहिये । आत्म-विजेता उसकी शक्ति को कौन तोल सकता है, जो आत्मविजेता है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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