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राम राम रस पोज : ललितप्रभ
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मनोसम्बन्ध मन न मित्र है, न शत्रु । उसके साथ मित्रता रखने वाले के लिए वह मित्र है और शत्रुता रखने वाले के लिए शत्र।
मन्दिर-नियम मन्दिर में प्रवेश से पूर्व अनर्गलता की गठड़ी को वहीं छाड़ दो, जहाँ जूते खोले हैं ।
मरण-परिवर्तन
शरीर मरता है, मन बदलता है ।
मरणोपरान्त मृत्यु के बाद शव को सजाना नाटकीयता है, किन्तु जीते जी दिया जाने वाला प्रम मानवीय जीवन्तता है।
मांगना अगर भांगने से ही मिलता होता, तो भिखारी माँगमाग कर सम्राट बन जाला ।
माँ
बेटा बाप से बढ़कर हो सकता है, लेकिन माँ के चरण चूमने के लिए बेटे के होंठ सदा प्यासे रहते हैं ।
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