Book Title: Rom Rom Ras Pije
Author(s): Lalitprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 81
________________ ६६ ] रोम रोम रस पीजे : ललितप्रभ सम्पर्क पानी की एक बूंद सर्प के मुंह में विष और सीप के मुंह में मोती बनती है। इसलिए मानव को ऐसे लोगों से ही सम्पर्क रखना चाहिये जो मोती में ढालने की क्षमता रखते हों। सम्बन्ध सम्बन्धों से संसार बनता है। मुक्ति सम्बन्धों में अनासक्ति की प्रेरणा है । सम्भावना जितनी अंधेरी रात होगी, उतनी ही प्यारी सुबह होगी। सम्मान दूसरों के प्रानन्द को सम्मान से देखो, अन्यथा ईर्ष्या की अग्नि तुम्हें जला देगी। सम्यग्दृष्टि शास्त्रों के जानकार कदम दर कदम हैं। किन्तु सम्यग्दृष्टि का उद्घाटन विरलों को ही होता है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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