Book Title: Rom Rom Ras Pije
Author(s): Lalitprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 80
________________ रोम रोम रस पीजे : ललितप्रभ [ ६५ सद्भाव-प्रतिष्ठा जीवन में सुख और शान्ति लाने के लिए अवैर, प्रेम, मैत्री और भाईचारे की भावना को प्रतिष्ठित करना आवश्यक है। सन्तोष ईर्ष्या दूसरे को सुखो देखकर प्रमुदित होना सन्तोष है और जलना ईर्ष्या । सभ्यता जीवन को सभ्य और सुसंस्कृत बनाने के लिए स्वयं को दुष्प्रवृत्तियों से दूर रखना चाहिये। समर्पण सिर का झुकाना नमन है और दिल का झुकाना समर्पण। बिंदु का सिंधु में खोना ही भक्त का भगवान होना है। समानता किसे मित्र कहा जाये और किसे शत्रु। कल का मित्र आज शत्रु बन जाता है और आज का शत्रु कल मित्र । Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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