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रोम रोम रस पीजे : ललितप्रभ
सचेतनता सचेतनता पूर्वक किया जाने वाला क्रोध, क्रोध नहीं वरन् न्याय एवं सुधार का एक प्रकार है।
सत्कर्म-प्रवृत्ति सुख में ही सत्कर्म कर लो, दुःख में दुःख ही याद आएगा। सरदर्द होने पर ध्यान नहीं, सर का दर्द ही याद प्राता है।
सत्पथ 'महाजनोयेन गतः सःपन्था' की अभ्यर्थना करने वाले एक ही मार्ग की सत्यता का हठयोग क्यों करते हैं, जो और मार्ग हैं, महापुरुष उन पर भी चलते हैं। सच्चा पथ तो वही है, जो और पन्थों की अच्छाइयों की ओर ले जाता है।
सत्संग सत्संग जीवन में आध्यात्मिक परिवर्तन लाने के लिए क्रान्तिकारी पहल है।
ज्योतिर्मय पुरुषों का संसर्ग करते हुए समत्ववृत्ति से जीने वाला मनुष्य ही संसार के वलय से मुक्त हो सकता है।
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