Book Title: Rom Rom Ras Pije
Author(s): Lalitprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 88
________________ रोम रोम रस पीजे : ललितप्रभ [ ७३ स्वास्थ्य शरीर के लिए स्वास्थ्य का अर्थ है, शरीर के धर्म में शरीर स्थिर हो जाये। स्वास्थ्य का भीतरी अर्थ तो स्व-स्थ/अात्मस्थ होना है। प्रेम की झील में हँस ही गति कर सकता है। हक प्रेम और खैर जिन्दों का हक है, मुर्दो का हक सिर्फ कफन है। हार-जीत __ जहाँ विजय का भाव ही समाप्त हो जाता है, वहाँ हार कहाँ। हिंसा किसी भी प्राणी की हत्या परमात्मा की आभा का इंकार है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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